पुष्यानुग चूर्ण (Pushyanug Churna) एक आयुर्वेदिक चूर्ण कल्पना है जिसका वर्णन आयुर्वेद की अधिकांश संहिताओं से प्राप्त होता है।
इसका का सर्वप्रथम वर्णन चरक संहिता चिकित्सास्थान अध्याय ३० योनिव्यापद चिकित्सा के अंतर्गत मिलता है। तत्पश्चात यह कल्पना अधिकांश आयुर्वेदिक ग्रंथों जैसे- भैषज्यरत्नावली योनिव्यापद रोगाधिकार1श्री गोविंद दास, भैषज्य रत्नावली, प्रदर रोगाधिकार 66/31, आयुर्वेद सार संग्रह चूर्ण कल्पना, योगरत्नाकर, अष्टांगसंग्रह और अष्टांगहृदय में वर्णित है।
यह एक आयुर्वेदिक औषधीय चूर्ण कल्पना है जो २६ प्राकृतिक घटक द्रव्यों को मिलाकर तैयार की जाती है। आयुर्वेद में पुष्यानुग चूर्ण का उपयोग मुख्यरूप से अशृगदर अथवा प्रदर (Menorrhagia) चिकित्सा में किया जाता है।
मासिक धर्म के दौरान अथवा रजः स्राव काल (period of menstruation) के अतिरिक्त अन्य काल में अधिक मात्रा में रक्त स्राव (रज का स्राव) होना प्रदर कहलाता है। आचार्य चरक ने प्रदर रोग के वातज, पित्तज, कफज व सन्निपातज चार भेद बताए हें।
चरक संहिता के अनुसार पुष्यानुग चूर्ण का उपयोग योनिदोष (vaginal disorders), रजोदोष (मासिक धर्म संबंधी विकार), तथा मासिक धर्म के दौरान अधिक मात्रा में श्वेत, पीत, नील तथा रक्त योनि स्राव में उपयोगी बताया गया है।
इनके अलावा पुष्यानुग चूर्ण का उपयोग अर्श रोग (बवासीर), रक्तातिसार (खूनी दस्त), बालकों के दोष, आगंतुज उदर रोग तथा सभी प्रकार के स्राव (bleeding or discharge) सम्बंधी रोगों में उपयोगी बताया गया है2अग्निवेश, चरक संहिता, चिकित्सा स्थान, योनिव्यापद चिकित्सा 30/90-95।
पुष्यानुग चूर्ण के घटक: Pushyanug Churna ingredients in Hindi
२५ हर्बल तथा एक मिनेरल (गैरिक) घटक द्रव्यों को मिलाकर पुष्यानुग चूर्ण में २६ प्रकृतिक द्रव्य होते हें जिनकी सूची निम्न प्रकार है।
घटक द्रव्य/Ingredients | वानस्पतिक नाम |
---|---|
पाठा | Cyclea peltata |
जम्बू बीज मज्जा | Eugenia jambolana |
आम्र बीज मज्जा | Mangifera indica |
पाषाण भेद (शिला भेद ) | Aerua lanata |
रसाञ्जन (दारुहरिद्रा) | Ber)beris aristata |
अंबष्ठा | Cissampelos pareira |
शाल्मली (मोचरस) | Salmalia malabarica |
समंगा | Mimosa pudica |
पद्मकेसर (कमल) | Nelumbo nucifera |
वाहिलिका | Crocus sativus |
अतिविषा (अतीस) | Aconitum heterophyllum |
बिल्व | Aegle marmelos |
मुस्ता | Cyperus rotundus |
लोध्र | Symplocos racemosa |
गैरिक | Red Ochre |
सोनपाठा (कटवंग) | Oroxylum indicum |
मरिच | Piper nigrum |
शुण्ठी (अदरक) | Zingiber officinalis |
द्राक्षा (मृद्विका) | Vitis vinifera |
रक्त चन्दन (Red sandalwood) | Pterocarpus santalinus |
कटफल | Myrica nagi |
वत्सक | Holarrhena antidysenterica |
अनंत मूल | Hemidesmus indicus |
धातकी पुष्प | Woodfordia fruticosa |
मधुयष्टि (मधूक) | Glycyrrhiza glabra |
अर्जुन छाल | Terminaliya arjuna |
श्लोक: Pushyanuga churna sloka:

पुष्य नक्षत्र का महत्व एवं औषधि का नामकरण
प्रधान ग्रंथ (चरक संहिता) में पुष्यानुग चूर्ण के सभी घटक द्रव्यों को पुष्य नक्षत्र में संग्रह करने का विधान है।
चूँकि इस चूर्ण कल्पना के सभी घटक द्रव्यों को पुष्य नक्षत्र में संग्रहित किया जाता है इसलिए इसे पुष्यानुग चूर्ण कहते हैं।
प्रमुख आयुर्वेदिक ग्रंथों में पुष्यानुग चूर्ण के घटक द्रव्यों के संग्रह के सम्बंध में पुष्य नक्षत्र के महत्व का वर्णन है।
वर्णित है कि पुष्य नक्षत्र में संग्रहित घटक द्रव्य अधिक वीर्य संपन तथा गुणों युक्त होते हैं जिससे तैयार औषधि अधिक गुणवान तथा प्रभावी रूप से कार्य करती है। इसलिए सभी घटक द्रव्यों को पुष्य नक्षत्र में संग्रहित करने का विधान है।
पुष्यानुग चूर्ण बनाने की विधि
पुष्यानुग चूर्ण तैयार करने के लिए सभी घटक द्रव्यों को पुष्य नक्षत्र में संग्रहित करते हें। तत्पश्चात प्रत्येक घटक द्रव्य को समान मात्रा में लेकर पीसकर बारीक चूर्ण बनाते हें। इस प्रकार एकत्रित चूर्ण औषधि को सुरक्षित कर लेते हें। इसे पुष्यनुग चूर्ण कहते हें।
आयुर्वेद सार संग्रह में इसे पुष्यानुग चूर्ण नं. 1 से वर्णित किया गया है। इस चूर्ण का सेवन 2-3 ग्राम मात्रा में अनुपान (adjuvants) जैसे- मधु (शहद), तंडुलोदक (चावल का पानी) या दूध के साथ करने से यह अत्यंत फायदेमंद होता है।
इस चूर्ण कल्पना की तैयारी में यदि केसर की जगह नागकेसर का इस्तेमाल किया जाता है तो उसे पुष्यानुग चूर्ण नं 2 कहते हें।
पुष्यानुग चूर्ण का उपयोग: Pushyanug churna Uses in hindi
- असृग्दर अथवा प्रदर (रजः स्राव काल के दौरान अधिक व अनियमित रक्त स्राव /मेनोरेजिया)
- योनि दोष (vaginal morbidities) और योनि स्राव (vaginal discharge)
- रजो दोष या आर्तव दोष (मासिक धर्म संबंधी विकार)
- योनि स्राव (अत्यधिक मात्रा में श्वेत, रक्त, पीत, नील योनि स्राव)
- श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया)
- गर्भाशय विकार (Uterine disorders/metrorrhagia)
- अर्श रोग (खूनी बवासीर)
- रक्तातिसार (खूनी दस्त)
- प्रवाहिका (रक्त मिश्रित पतले दस्त)
- योनिक्षत (महिला जननांग आघात)
- योनिदाह (योनि दाह व कण्डु या खुजली)
- आगंतुज उदर रोग (बाहरी कारणों से उत्पन्न उदर रोग)
- बालकों के दोष (बाहरी कारणों से उत्पन्न बालकों के रोग)
- दन्तोत्पत्ति जन्य रोग (बच्चों के दांत निकलने संबंधी रोग)
- कृमि रोग (कृमि द्वारा संक्रमण या परजीवी से उत्पन्न रोग3योगरत्नाकर, स्त्री रोगाधिकार प्रदार चिकित्सा/7)
इनके अलावा पुष्यानुग चूर्ण का उपयोग सभी प्रकार के प्रदर तथा स्राव सम्बंधी रोगों में किया जाता है।
पुष्यानुग चूर्ण के फायदे: Pushyanug Churna benefits in hindi
पुष्यानुग चूर्ण तिक्त, कषाय रस युक्त, तथा शीत वीर्य प्रधान होता है। आयुर्वेद में इसे लघु-रुक्ष, रक्तस्तंभक (हेमोस्टैटिक), रक्तशोधक, शोथहर (सूजन रोधी), पित्त दोष हर, कफ शामक, शोणितस्थापन, वेदनाशामक, तथा ग्राही गुणों युक्त बताया है।
यह शोथहर (सूजन रोधी) व शीत वीर्यात्मक होने से यह पित्त दोष, दाह और वेदना का शमन करता है। रक्तस्तंभक होने अधिक रक्तस्राव को कम करता है। लघु-रुक्ष होने से यह हो कफ दोषहर है। रक्तशोधक होने से यह हो शोधन करता है।
इसप्रकार यह स्त्रीरोग तथा मासिक धर्म और स्राव (डिस्चार्ज) सम्बंधी चिकित्सा में व्यापक रूप से फायदेमंद है।
प्रदर रोग (मेनोरेजिया) में पुष्यानुग चूर्ण के फायदे
असृग्दर जिसे प्रदर रोग भी कहते हें रजः स्राव (menstruation period) काल के दौरान अथवा अन्य काल में अधिक मात्रा में रक्त की प्रवृति की स्थिति है। आधुनिक प्रदर व्याधि की मेनोरेजिया से संबद्ध कर समझा जा सकता है।
अधिक मात्रा में लवण, अम्ल, कटु, गुरु तथा विदाही पदार्थों के सेवन से वात दोष के प्रकुपित होने के कारण यह रक्त को दूषित करता है जिससे रक्त की वृद्धि के साथ अधिक मात्रा में स्राव होता है। यह प्रदर अधिक मात्रा व समय तक अनियमित रक्त स्राव, वेदना, श्रोणि तथा कुक्षि (पेट) में दाह, गर्भाशय वेदना आदि लक्षणों युक्त होता है।
पुष्यनुग चूर्ण रक्तस्तंभक होने से यह अधिक रक्त स्राव को विनियमित करता है। इसके बल्य (बलकारक) तथा रक्तस्थापक द्रव्य खून की कमी, कमजोरी आदि को दूर करने में मदद करते हें साथ ही गर्भाशय स्थापना को बड़वा देते हें।
यह शोथहर, दाह हर शीतवीर्य तथा वेदना शामक होने से सूजन, जलन, शूल तथा पित्त दोष का शमन करता है और योनि दोष तथा गर्भाशय रुग्णता को दूर करता है। इस प्रकार यह प्रदर रोग में अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है4Vatsala Jain et al: A Critical Review On Pushyanuga Churna: An Ayurvedic Polyherbal Formulation. International Ayurvedic Medical Journal 2019 Available from: http://www.iamj.in/posts/images/upload/609_615.pdf.।
श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) में पुष्यानुग चूर्ण के फायदे
श्वेत प्रदर का वर्णन आचार्य चरक ने कफ़ज योनिव्यापद के अंतर्गत किया है। यह प्रमुखतः वात व कफ दोष प्रकोप के कारण उत्पन्न होने वाली व्याधि है। आचार्य चरक अनुसार अधिक कफ वर्धक आहार-विहार का सेवन करने से तथा वमन, श्वास आदि प्रकृतिक वेगों को रोकने से कफ तथा वात की वृद्धि होती है।
परिणामस्वरूप अधिक मात्रा में योनि से श्वेत वर्ण का स्राव उत्पन्न होता है इसे श्वेत प्रदर कहते हैं। आधुनिक में इसे ल्यूकोरिया से संबद्ध कर समझा जा सकता है।
पुष्यनुग चूर्ण लघु-रुक्ष होने से वात तथा कफ को शांत करता है तथा प्रमुख रूप से योनि स्राव को विनियमित करने के कारण श्वेत प्रदर में इसका उपयोग लाभकारी है5Salve, P., & Ghule, J. (2019). A Review study of effect of Pushyanug Churna in Shwet Pradar. Ayurline: International Journal of Research in Indian Medicine, 3(02). https://doi.org/10.52482/ayurline.v3i02.195।
अर्श (बवासीर) में पुष्यानुग चूर्ण के फायदे
आचार्य चरक ने इस व्याधि का वर्णन चिकित्सास्थान, अर्शचिकित्सा अध्याय 14 में किया है। अर्श एक वात प्रधान त्रिदोषज व्याधि है। जो त्रिदोष तथा रक्त प्रकोप से उत्पन्न होती है। दोष प्रकोप आगे मांस, मेद, रक्त आदि धातुओं को दूषित कर गुदा (मलाशय) में सूजन तथा मांस अंकुरों को उत्पन्न करता है।
परिणामस्वरूप, मलत्याग के समय वेदना, जलन, कण्डु (खुजली) तथा रक्त की प्रवृति होती है। आधुनिक में इसे बवासीर से संबद्ध कर समझा जा सकता है।
पुष्यानुग चूर्ण तिक्त, कषाय रस युक्त होता है। यह शोथहर, रक्तस्तंभक तथा शीत वीर्य प्रधान होने से सूजन, जलन तथा रक्तप्रवृति को दूर करता है। इस प्रकार यह अर्श रोग के उपचार में निर्देशित है।
रक्तातिसार में पुष्यानुग चूर्ण के फायदे
रक्तातिसार (ब्लीडिंग डायरिया) का वर्णन आचार्य चरक ने चिकित्सास्थान अध्याय 30 में किया है। आचार्य चरक के अनुसार पित्तज अतिसार से पीड़ित जो रोगी यदि उचित चिकित्सा न कराये बल्कि इसके विपरीत पित्तवर्धक आहार विहार का सेवन करता है तो उसके पित्त दोष के अधिक विकृत हो जानने के कारण वह रक्ततिसार से पीड़ित हो जाता है।
आधुनिक में इस व्याधि को यह खूनी दस्त और अल्सरेटिव कोलाइटिस से संबद्ध कर समझा जा सकता है।
रक्ततिसार के उपचार में पुष्यानुग चूर्ण का प्रयोग लाभकारी है। इसके पित्त शामक, रक्तस्तम्भक, और शीत वीर्य गुण प्रकुपित पित्त दोष को शांत करने के साथ-साथ रक्तस्राव, जलन और दर्द का इलाज करने सहायक हैं।
मात्रा व सेवन विधि: Pushyanug churna dosage and how to take in Hindi
पुष्यानुग चूर्ण का सेवन करने के लिए 1-3 ग्राम मात्रा में औषध चूर्ण को उचित अनुपान मधु (शहद), तंदुलोदक (चावल का पानी) या दूध के साथ सुबह-शाम भोजन करने से पहले अथवा बाद में ले सकते हैं।
समान्यतः चूर्ण कल्पना की मात्रा 3 से 6 ग्राम होती है। आयुर्वेदिक फॉर्मूलरी ऑफ इंडिया में पुष्यानुग चूर्ण की मात्रा 1 से 3 ग्राम निर्देशित है। औषधि सेवन मात्रा के विषय में आपको को आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए क्योंकि मात्रा तथा सेवन अवधि रोग की स्थिति के अनुसार अलग हो सकती है।
पुष्यानुग चूर्ण के नुकसान: Pushyanug churna side effects in hindi
- पुष्यानुग चूर्ण के सेवन से संबन्धित कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं है। फिर भी, इस दवा का सेवन चिकित्सीय देखरेख से बाहर नहीं करना चाहिए।
- यह दवा मासिक धर्म संबंधी अधिक रक्त स्राव अथवा योनि स्राव को विनियमित करने में मदद करती है अतः इस दवा का सेवन अनियंत्रित रज स्राव अथवा योनि स्राव की स्थिति में करना चाहिए।
- दवा का अधिक मात्रा व लम्बी अवधि तक सेवन करने से अनियमित अथवा अधिक मासिक धर्म रक्तस्राव जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हें।
- गर्भवती महिलाओं को इस दवा का सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
क्या एंडोमेट्रियोसिस में पुष्यानुग चूर्ण का प्रयोग कर सकते हैं?
एंडोमेट्रियोसिस कारण मुख्य रूप से वात प्रकोप है अधिक वात प्रकोपक हेतुओं का सेवन करने से वृद्धि को प्राप्त वात दोष रक्त, मांस और मेद धातु को दूषित कर और आर्तव को दूषित कर गर्भाशय के अलावा अन्य स्थानों पर स्थापित कर देता है जिस से अधिक रक्त स्राव, योनि वेदना आदि लक्षण उत्पन्न होते हें।
पुष्यानुग चूर्ण का उपयोग एंडोमेट्रियोसिस से संबंधी दर्द, योनि स्राव, वेदना और मासिक धर्म संबंधी अनियमितताओं को दूर करने में उपयोगी हो सकता है। अन्य आयुर्वेदिक संशमन औषधियाँ जैसे- चन्द्रकला रस, दशमूलारिष्ट, प्रदरांतकारस, प्रदरारिरस, दशमूलारिष्ट, फल घृत, फलकल्याणक घृत आदि एंडोमेट्रियोसिस के उपचार में उपयोगी साबित हो सकते हें6Dr. Vishwesh B. N. (2017). Endometriosis and its Ayurvedic perspective. Journal of Ayurveda and Integrated Medical Sciences, 2(03), 259-262. Retrieved from https://www.jaims.in/jaims/article/view/219।
क्या पीसीओएस के लिए पुष्यानुग चूर्ण का प्रयोग कर सकते हैं?
पीसीओएस में मासिक धर्म की अनियमितताओं जैसे- मासिक धर्म स्राव अनुपस्थिति, अनियमित मासिकधर्म स्राव, योनि स्राव, हॉर्मोनल अनियमितताओं आदि के प्रबंधन के लिये के लिए पुष्यानुग चूर्ण फायदेमंद हो सकता है। सेवन के संबंध में आपको आयुर्वेदिक चिकित्सक से बात करनी चाहिए।
विभिन्न आयुर्वेदिक संशमन औषधियाँ जैसे- शतपुष्पा, त्रिफला क्वाथ, काँचनार गुग्गुलु, आरोग्यवर्धिनी वटी, मणिभद्र रस तथा पंचकर्म शोधन चिकित्सा जैसे- उत्तर बस्ती, यापना बस्ती, गुडुच्यादि रसायन बस्ति, पीसीओएस के प्रबंधन में उपयोगी हैं7Dayani Siriwardene SA, Karunathilaka LP, Kodituwakku ND, Karunarathne YA. Clinical efficacy of Ayurveda treatment regimen on Subfertility with Poly Cystic Ovarian Syndrome (PCOS). Ayu. 2010 Jan;31(1):24-7. doi: 10.4103/0974-8520.68203. PMID: 22131680; PMCID: PMC3215317.।
इनके अतिरिक्त पथ्य आहार-विहार का सेवन पीसीओएस के प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
क्या बंध्यत्व (बांझपन) में पुष्यानुग चूर्ण का प्रयोग कर सकते हैं?
आयुर्वेद के अनुसार, ऋतुकाल, गर्भस्थ स्थिति और बीज (अंडाणु और शुक्राणु), ये सभी कारक गर्भोत्पत्ति में योगदान करते हैं यदि इनमें से किसी में विकार उत्पन्न होता है, तो गर्भावस्था उत्पन्न नहीं होती है। वात प्रकोप को भी बंध्यत्व के कारणों में से एक माना जाता है।
बंध्यत्व के इलाज में पुष्यानुग चूर्ण का कोई सीधा उपयोग नहीं है। बल्कि, इसका उपयोग योनि क्षेत्र से होने वाले स्राव को रोकने के लिए किया जाता है।
कई तरह की आयुर्वेदिक औषधियाँ जिनका इस्तेमाल बंध्यत्व के प्रबंधन में सदियों से किया जा रहा है। इन औषधियों में फलघृत, शतावरी घृत, योगराज गुग्गुलु, दशमूल क्वाथ, शतपुष्पा तैल नस्य, कल्याणक घृत, गुडूची रसायन आदि शामिल हैं।
इनके अलावा, आयुर्वेद में बंध्यत्व के उपचार में आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा जैसे- वमन, विरेचन, अनुवासन बस्ति, निरुह बस्ति, उत्तर बस्ति निर्देशित हैं।
References
- 1श्री गोविंद दास, भैषज्य रत्नावली, प्रदर रोगाधिकार 66/31
- 2अग्निवेश, चरक संहिता, चिकित्सा स्थान, योनिव्यापद चिकित्सा 30/90-95
- 3योगरत्नाकर, स्त्री रोगाधिकार प्रदार चिकित्सा/7
- 4Vatsala Jain et al: A Critical Review On Pushyanuga Churna: An Ayurvedic Polyherbal Formulation. International Ayurvedic Medical Journal 2019 Available from: http://www.iamj.in/posts/images/upload/609_615.pdf.
- 5Salve, P., & Ghule, J. (2019). A Review study of effect of Pushyanug Churna in Shwet Pradar. Ayurline: International Journal of Research in Indian Medicine, 3(02). https://doi.org/10.52482/ayurline.v3i02.195
- 6Dr. Vishwesh B. N. (2017). Endometriosis and its Ayurvedic perspective. Journal of Ayurveda and Integrated Medical Sciences, 2(03), 259-262. Retrieved from https://www.jaims.in/jaims/article/view/219
- 7Dayani Siriwardene SA, Karunathilaka LP, Kodituwakku ND, Karunarathne YA. Clinical efficacy of Ayurveda treatment regimen on Subfertility with Poly Cystic Ovarian Syndrome (PCOS). Ayu. 2010 Jan;31(1):24-7. doi: 10.4103/0974-8520.68203. PMID: 22131680; PMCID: PMC3215317.