आयुर्वेद में औषधि सेवन काल (Aushadha Sevana Kala) जिसे भेषज सेवन काल भी कहते हैं। उचित समय पर सुनियोजित ढंग से औषध के प्रशासन के काल को औषध सेवन काल कहते हैं। अर्थात् औषध के प्रशासन या औषधि देने के समय को भेषज सेवन काल कहते हें। यह अवस्थिक काल के अंतर्गत आता है।
विभिन्न आचार्यों ने उचित समय पर औषधि लेने के लिए दिशानिर्देश के रूप में औषधि सेवन काल का वर्णन किया है। इन काल को औषधि प्रशासन के लिए एक उचित समय माना जाता है।
दवा पूर्ण रूप से प्रभाव तभी सिद्ध होगी जब उसे यह उचित समय पर सुनियोजित तरीक़े से प्रशासित किया जाए 1Aneesh E.G., Deole Y.S.. Aushadha Sevana Kala. In: , eds. Charak Samhita New Edition. 1st ed. Jamnagar, Ind: CSRTSDC; 2020. https://www.carakasamhitaonline.com/index.php?title=Aushadha_Sevana_Kala&oldid=41291. Accessed January 19, 2023.।
क्योंकि दवा की उचित खुराक, गुणवत्ता और अनुपान होने के बावजूद भी अनुउचित समय में दवा लेने से वह पूर्णरूपेण रोग का शमन नहीं कर सकती और रोगी को पूरी तरह से उचित राहत नहीं दे सकती है।
इसलिए यह महत्वपूर्ण है औषधि की सम्पूर्ण प्रभावकारिता के लिए चिकित्सा में किसी भी औषधि को प्रशासित करते समय रोग व रोगी के बल, दोष, औषधि, सात्म्य, असत्म्य, अनुपान, देश, पथ्य-अपथ्य तथा औषध, मात्रा के अलावा औषधि सेवन काल को ध्यान में रखना अति आवश्यक है। तभी चिकित्सा का प्रयोजन भी सम्भव है।
आचार्य चरक के अनुसार सही समय पर व सुनियोजित तरीक़े से दी गयी औषधि ग़लत समय पर दी गयी औषधि की तुलना में अधिक प्रभावी होती है2अग्निवेश, चरक संहिता, चिकित्सा स्थान, योनिव्यापत चिकित्सा अध्याय, 30।। इसलिए रोगी के रोग निवारण के लिए सही समय पर औषधि का प्रयोग करना आवश्यक है।
पर्याय – भेषज्य काल, भेषज काल, भेषज्य ग्रहण काल, औषध अवचारण काल, अगद काल, भेषज उपकर्म काल, औषध काल।
औषध सेवन काल संख्या
विभिन्न आचार्यों के अनुसार औषध सेवन काल:
- आचार्य चरक और सुश्रुत ने औषध सेवन के 10 काल का वर्णन किया है।
- आचार्य वाग्भट्ट (अष्टांग हृदय) में औषध सेवन के 10 काल बताए हें3वाग्भट्ट, अष्टांग हृदय, सूत्र स्थान, दोषोपक्रमणीय अध्याय, 13।।
- अष्टांग संग्रह में चरक द्वारा बताए गए 10 काल में निशा (रात्रि) काल को मिलाकर 11 काल बताए हें4वाग्भट्ट, अष्टांग संग्रह सूत्र स्थान, भेषजावचारणीय अध्याय 23।।
- इनके अलावा आचार्य शारंगधर ने औषध सेवन के 5 काल बताए हैं5शारंगधर संहिता, प्रथम खंड, 2/2।।
आचार्यों के नाम | Aushadha Sevana Kala |
---|---|
चरक, सुश्रुत, अष्टांग हृदय (वाग्भट्ट), काश्यप | 10 |
अष्टांग संग्रह | 11 |
शारंगधर | 05 |
आचार्य चरक के अनुसार औषध सेवन काल:
- निरन्न (प्रातः)
- भुक्तादौ
- भुक्तमध्ये
- भुक्तपश्चात (प्रातः)
- भुक्तपश्चात (साँय)
- मुहुर्मुहु
- सामुद्ग
- भक्तसंयुक्त
- ग्रास
- ग्रासांतर
आचार्य सुश्रुत के अनुसार के अनुसार औषध सेवन काल:
- अभक्त (प्रातः काल सूर्योदय के समय भूखे पेट)
- प्राग्भक्त (प्रातः काल भोजन से पहले)
- अधोभक्त ( भोजन के तुरंत बाद)
- मध्येभक्त (आधे भोजन के दौरान)
- अन्तराभक्त (दोपहर में जब सुबह का खाना पच जाए या दो भोजन काल में )
- सभक्त (भोजन के साथ औषधि मिलाकर)
- सामुद्ग (भोजन के प्रारंभ और अंत में)
- मुहुर्मुहु (बार-बार औषधि सेवन)
- सग्रास (भोजन के हर निवाले के साथ)
- ग्रासान्तर (भोजन के दो निवाले के बीच में)
- निशा (रात्रि के समय सोने से पहले) – अष्टांग संग्रह
अष्टांग हृदय के अनुसार औषध सेवन काल:
- अभक्त (अन्नन)
- प्राग्भक्त (अन्नादौ)
- मध्येभक्त
- अधोभक्त
- सभक्त
- सामुद्ग
- मुहुर्मुहु
- सग्रास
- ग्रासान्तर (कवलान्तरे)
- निशा (रात्रि)
आचार्य शारंगधर के अनुसार औषध सेवन काल
- सूर्योदये जाते (सूर्योदय के समय)
- दिवसभोजने (दिन के भोजन के समय)
- सायन्तने भोजने (साँयकाल के भोजन के समय)
- मुहुश्चापि (मुहुर्मुहु) बार-बार औषधि सेवन
- निशि (रात्रि के समय सोने से पहले)
औषध सेवन काल चार्ट:

औषध सेवन काल श्लोक:

चरक के अनुसार:
रोग्यवेक्षो यथा प्रातर्निरन्नो बलवान् पिबेत।
-च. चि. 30/297-301
भेजं लघु पथ्यान्नैर्युक्त क्तमद्यातु दुर्बलः॥
भैषज्य कालो भुक्तादौ मध्येपश्चान्मुहुर्मुहः॥
समुद्गम् भक्तसंयुक्तं ग्रासग्रासान्तरे दशः॥
अपाने विगुणे पूर्वं समाने मध्यभोजनम्॥
व्याने तु प्रातरशितमुदाने भोजनोत्तरम्॥
वायौ प्राणे प्रदुष्टे तु ग्रासग्रासान्तरिष्यते॥
श्वासकासपिपासासु त्ववचार्यं मुहुर्मुहुः॥
समुद्गम् हिक्किने देयं लघुनान्ने संयुतम्॥
समभोज्यं त्वौषधमं भौज्यैर्विचित्रैररुचौ हितम्॥
सुश्रुत के अनुसार:
अत ऊर्ध्वं दशौषधकालान् वक्ष्यामः।
-सु. उ. 64/65
तत्राभक्तं प्राग्भक्तमधोभक्तं मध्येभक्तमन्तराभक्तं
सभक्तं समुद्गं मुहुर्मुहुर्ग्रासं चेति दशौषधकालाः॥
वाग्भट्ट (अष्टांग हृदय) के अनुसार:
युञ्ज्ज्यािनन्नमन्नािौ मध्येऽन्तेकविान्तरे|
अ. हृ. सू. 13/37
ग्रासेग्रासेमुहुः सान्नं सामुद्गं हनहिचौषधम्||३७||
शारङ्गधर के अनुसार:
ज्ञेयः पंचविधः कालो भैषज्य ग्रहणो नृणाम।
शा. सं. पू. ख. 2/1
किञ्चित् सूर्योदये जाते तथा दिवसभोजने॥
सायन्तने भोजने च मुहुश्चपि तथा निशि।
आयुर्वेद में औषध सेवन काल
आयुर्वेद में सभी रोगों का कारण मंद अग्नि बताया है अनुचित समय पर लिया गया आहार व औषध मंद अग्नि का कारण बनता है जिससे रोग उत्पन्न होते हें. इसलिए अग्नि समता बनाये रखने के लिए लिए अग्नि के बल के अनुसार तथा काल के अनुसार आहार तथा औषध लेना आवश्यक है।
अष्टांग संग्रह के अनुसार ‘कालो भैषज्य योग कृता” अर्थात काल भेषज (औषध) के प्रशासन के उद्देश्य को पूरा करता है 6Dr. Swathi R; Dr. Vikram S; Dr. Smrithi V; Dr. Deepika S. Critical Review of Aushadha Sevana Kaala. J Ayurveda Integr Med Sci 2018, 3, 212-1218.।
आयुर्वेदिक चिकित्सा का एक प्रमुख उद्देश्य धातु साम्य स्थापित करना है इसके लिए अग्नि को सम अवस्था में रखना जरूरी है।
अतः आचार्यों ने आयुर्वेदिक चिकित्सा जैसे- पंचकर्म शोधन चिकित्सा अथवा शमन चिकित्सा के प्रयोजन (जोकि अग्नि की विषमता को दूर करना व धातु समय स्थापित करना है) के लिए औषध तथा अन्न को युक्तिपूर्वक प्रयोग करके औषध सेवन काल का वर्णन किया है।
औषध सेवन काल : उपयोग और संकेत, Aushadh Sevan Kaal in Hindi
आईये औषध सेवन के काल के बारे में विस्तार से जानते हैं।
अभक्त (निरअन्न ) – प्रातः काल खाली पेट
सुबह सूर्योदय के समय खाली पेट औषधि सेवन करने को अभक्त काल कहते हैं । या पिछले दिन का भोजन के पच जाने के बाद सुबह खाली पेट औषधि का सेवन करना अभक्त या अनन्न कहलाता है। और औषधि पचने के बाद ही भोजन करना चाहिए।
इस समय ली जाने वाली औषधि गुणकारी व प्रभावी होती है। आचार्य इन्दु के अनुसार सूर्योदय के एक याम (तीन घंटे) पश्चात लेनी चाहिए चाहिए। हेमाद्री के अनुसार कफ उदरेक गत काल में प्रयुक्त करनी चाहिए।
जिस प्रकार बलवान दुर्बल को जीत लेता है ठीक उसी प्रकार इस काल में सेवन की गई औषधि रोग को जीत लेती है।
– आचार्य काश्यप
उपयोग और संकेत:
- पित्त तथा कफ दोष की वृद्धि और कफ प्रकोप में।
- संतर्पणजन्य रोग में।
- रोग व रोगी के बलवान होने पर।
- सभी प्रकार के कषाय (पंचविध कषाय कल्पना)।
- और वमन, विरेचन, लेखन और रसायन औषधि को अभक्त काल में प्रयोग करना चाहिए।
सावधानी
अभक्त काल में बच्चों, बूढ़ों, स्त्री व युवकों को औषधि सेवन नहीं कराना चाहिए अथवा उन्हें कुछ भोजन कराकर औषधि सेवन कराना चाहिए। अन्यथा, ग्लानि तथा बल का क्षय जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।
प्राग्भक्त (भोजन से पहले)
भोजन से ठीक पहले औषधि सेवन के काल को प्रागभक्त काल कहते हें। अर्थात औषधि सेवन के बाद भोजन किया जाता है। इससे अन्नाद काल भी कहते हैं। आचार्य सुश्रुत अनुसार भोजन से ठीक पहले ली गई औषधि का शीघ्रता से पाचन होने के कारण यह व्यक्ति के बल का क्षय नहीं करती है7सुश्रुत संहिता, उत्तरतंत्र, सवस्थोपक्रम अध्याय, 64।।
उपयोग और संकेत:
- बालक, वृद्ध, स्त्रियों, डरपोक और कृच्छ (कमजोर)।
- अधः काय (शरीर के निचले हिस्से के रोग)।
- शरीर के निचले अंगों को मजबूत बनाने के लिए (अष्टांग संग्रह)
- आचार्य चरक अनुसार अपान वायु की विकृति में प्रागभक्त काल में औषधि सेवन करना चाहिए।
अधोभक्त ( भोजन के तुरंत बाद)
भोजन करने की ठीक पश्चात औषधि ग्रहण करने को अधोभक्त या पश्चातभक्त कहते हैं। इसको दो काल में बांटा गया है; प्रातः भोजन काल के पश्चात और साँय काल के भोजन के पश्चात।
इस काल में ली गयी औषधि शरीर के ऊपरी अंगों का बल वर्धन करती है और कमजोरी को दूर करती है।
उपयोग और संकेत:
- व्यान वायु विकृति में प्रातः भोजन के बाद।
- उदान वायु विकृति में साँय काल के समय भोजन के बाद।
- कफज विकार व शरीर के ऊपरी अंगों को मजबूत बनाने के लिए।
- स्वर भेद तथा कंठ रोगों में साँय काल भोजन के बाद।
- उच्च रक्त चाप, धमनी प्रतिचय व सर्वाङ्ग वेदना में सुबह भोजन के बाद।
मध्येभक्त (भोजन के बीच में)
भोजन के दौरान बीच में औषधि सेवन करने को मध्यभक्त कहते हैं। अर्थात् आधा भोजन करने के बाद औषधि ली जाती है और फिर शेष भोजन को ग्रहण किया जाता है।
उपयोग और संकेत:
- समान वायु विकृति (विकार)
- मध्य शरीर के कोष्ठ गत (जैसे- उदर) विकार
- मन्द अग्नि से उत्पन्न विकारों में
- और पित्त दोष प्रधान विकारों में इस काल में औषध सेवन करना चाहिए।
अन्तराभक्त (दो भोजन काल में )
सुबह के भोजन के पच जाने के बाद दोपहर में औषधि का सेवन करना या दो भोजन काल के बीच में में औषधि लेना अंतराभक्त काल कहलाता है। और दवा के पच जाने के बाद शाम को फिर से भोजन किया जाता है।
इस काल में ली गयी औषधि पथ्य (पुष्टिकारक, अग्निप्रदीपक और मन व हृदय के लिए हितकर (बलकारक) होती है।
उपयोग
दीपताग्नी, अरुचि और व्यानवायु विकारों में इस काल में औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
सभक्त (भोजन के साथ मिलाकर)
जब औषधि को भोजन में मिलाकर सेवन किया जाता है या जब औषधि को भोजन भोजन के साथ पकाकर सेवन किया जाता है तो उसे सभक्त सेवन काल कहते हैं।
उपयोग
बालक, वृद्ध, स्त्रियों, अरुचि, क्षत क्षीण , सर्वाङ्ग शरीर विकार तथा प्राण वायु की विकृति में इस काल में औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
सामुद्ग (भोजन के प्रारंभ और अंत में)
जब औषधि को भोजन के ठीक पहले और अंत में लिया जाए तो इस औषधि सेवन काल को सामुद्ग काल कहते हैं। हालांकि, हल्का भोजन लेना चाहिए। आचार्य शारंगधर के अनुसार पाचन, नस्य, अवलेह, चूर्ण आदि औषधियों को सामुद्ग काल में देना चाहिए।
उपयोग और संकेत:
हिक्का रोग (हिचकी), कम्प (tremors), आक्षेप (convulsions), मंदाग्नि, आम अवस्था, ऊर्ध्व और अधो भाग में स्थित दोषों में इस काल में औषधि लेने का विधान है।
मुहुर्मुहु (बार-बार औषधि सेवन)
आचार्य सुश्रुत अनुसार जब औषधि का बार-बार (भोजन के साथ या बिना) सेवन किया जाता है या कम मात्रा में बार-बार सेवन किया जाता है, तो इस समय अवधि को मुहुर्मुहु काल कहा जाता है।
यह काल दो समय अवधि में विभाजित है
- अभक्त मुहुर्मुहु – भोजन के साथ औषधि सेवन (चरक)
- सभक्त मुहुर्मुहु – भोजन के साथ या बिना, औषधि सेवन (सुश्रुत)
उपयोग
श्वास, कास, वमन, तृष्णा (प्यास), और विष से उत्पन्न विकारों में इस अवधि में औषधि का प्रयोग करने का विधान है।
सग्रास (भोजन के हर निवाले के साथ)
भोजन के हर निवाले के साथ आवश्यकतानुसार औषधि ग्रहण करने के काल को सग्रास औषधि सेवन काल कहते हैं। इस अवधि में चूर्ण (पाउडर), अवलेह, वटी (टबलेट), आदि योगों का उपयोग करने का संकेत दिया गया है।
उपयोग और संकेत:
प्राणवायु जन्य विकार, दीपन और पाचन औषधियाँ, अल्प शुक्र, हृद्रोग तथा वाजीकरण औषधियों का प्रयोग इस काल में सेवन करने का विधान है।
ग्रासान्तर (भोजन के दो निवाले के बीच में)
जब औषधि को भोजन के दो निवाले के बीच में लिया जाता है तो इस ग्रासान्तर औषधि सेवन कॉल करते हैं।
उपयोग और संकेत:
प्राणवायु से उत्पन्न विकार, अरुचि, हृदय रोग एवं वमनीय धूम, कास में निर्देशित अवलेह आदि में इस काल मैं औषध सेवन करने निर्देश है।
निशि (रात्रि को सोने से पहले)
इसे नैश या निशाकाल भी कहते हैं। इस औषधि सेवन काल का वर्णन अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय व शारंगधर संहिता में किया गया है। रात में सोने से पहले औषधि ग्रहण करने को निशा औषध सेवन काल कहते हैं।
विरचन, अनुलोमन, निंद्रा जनक के रूप में कार्य करने वाली औषधियों तथा मनोवह स्रोतस पर कार्य करने वाली औषधियों का प्रयोग इस काल में निर्देशित होता है।
उपयोग
ऊर्ध्वजत्रुगत विकार में, लेखन औषध, बृंहण (पुष्ट कारक), पाचन, शमन और विरेचकऔषधियों का प्रयोग इस काल में निर्देशित है
ड्रग इंटरेक्शन का ज्ञान जरूरी
आधुनिक समय में लोग आयुर्वेद और एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति दोनों का उपयोग करते हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि दवा पारस्परिक क्रियाओं के ज्ञान को ध्यान में रखते हुए दवा दी जानी चाहिए।
आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली कुछ आयुर्वेदिक दवाएं आधुनिक दवाओं के साथ परस्पर क्रिया कर सकती हैं, इसलिए एलोपैथिक दवा लेने के कुछ समय बाद आयुर्वेदिक दवा लेने से ड्रग इंटरेक्शन की संभावना कम हो सकती है।
इसके अलावा औषध सेवन काल या भैषज्य काल को केवल शमनौषधियों के प्रयोग में लाया जा सकता है अत्यायिका चिकित्सा (आपातकालीन स्थितियों) में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता है8Junjarwad AV, Savalgi PB, Vyas MK. Critical review on Bhaishajya Kaala (time of drug administration) in Ayurveda. Ayu. 2013 Jan;34(1):6-10. doi: 10.4103/0974-8520.115436. PMID: 24049398; PMCID: PMC3764882.।
आयुर्वेद में भी विपरीत औषधि और आहार को ध्यान में रखते हुए औषध सेवन काल (Aushadha Sevana Kala) का युक्तिपूर्वक प्रयोग करने का निर्देश है।
References
- 1Aneesh E.G., Deole Y.S.. Aushadha Sevana Kala. In: , eds. Charak Samhita New Edition. 1st ed. Jamnagar, Ind: CSRTSDC; 2020. https://www.carakasamhitaonline.com/index.php?title=Aushadha_Sevana_Kala&oldid=41291. Accessed January 19, 2023.
- 2अग्निवेश, चरक संहिता, चिकित्सा स्थान, योनिव्यापत चिकित्सा अध्याय, 30।
- 3वाग्भट्ट, अष्टांग हृदय, सूत्र स्थान, दोषोपक्रमणीय अध्याय, 13।
- 4वाग्भट्ट, अष्टांग संग्रह सूत्र स्थान, भेषजावचारणीय अध्याय 23।
- 5शारंगधर संहिता, प्रथम खंड, 2/2।
- 6Dr. Swathi R; Dr. Vikram S; Dr. Smrithi V; Dr. Deepika S. Critical Review of Aushadha Sevana Kaala. J Ayurveda Integr Med Sci 2018, 3, 212-1218.
- 7सुश्रुत संहिता, उत्तरतंत्र, सवस्थोपक्रम अध्याय, 64।
- 8Junjarwad AV, Savalgi PB, Vyas MK. Critical review on Bhaishajya Kaala (time of drug administration) in Ayurveda. Ayu. 2013 Jan;34(1):6-10. doi: 10.4103/0974-8520.115436. PMID: 24049398; PMCID: PMC3764882.