अर्जुन (Terminalia arjuna) जिसे आम तौर पर अर्जुन का वृक्ष भी कहते हें एक सदाबहार पेड़ है जो कॉम्ब्रेटेसी के फॅमिली में आता है। यह भारत में व्यापक रूप में पाया जाता है। आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग औषधीय रूप में किया जाता आ रहा है। भारतीय संस्कृति में अर्जुन का औषधीय महत्व प्राचीन काल से ही है।
यह रस में कषाय व मुख्य रूप से कफ व पित्त को शांत करता है। आयुर्वेद में अर्जुन को मुख्यरूप से ह्रदय संबंधी बीमारियों जैसे – कंजेस्टिव हार्ट फेलियर, रक्त में उच्च कोलेस्ट्रॉल व लिपिड की मात्रा (Dyslipidemia), एनजाइना (Ischemic chest pain), उच्च रक्तचाप (High blood pressure) आदि में प्रयोग किया जाता है।
इसके अतिरिक्त अर्जुन का उपयोग क्षय रोग यानि टीबी (tuberculosis), दस्त (Diarrhoea), अस्थमा (asthma) और क्षयज कास (cough) सूजन (swelling), बुखार (fever) के उपचार के लिए भी किया जाता है।
आयुर्वेद में औषधीय प्रयोग के लिए अर्जुन वृक्ष की मुख्य रूप से “अर्जुन की छाल का प्रयोग” किया जाता है।
आधुनिक अध्ययन द्वारा भी इसमें एंटी-इस्केमिक, एंटीऑक्सिडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और जीवाणु रोधी (antimicrobial) गुण पाये गये हें तथा अर्जुन को हृदय के लिए एक गुण कारी टॉनिक के रूप में प्रभावी पाया गया है1Amalraj, Augustine & Gopi, Sreeraj. (2016). Medicinal properties of Terminalia arjuna (Roxb.) Wight & Arn.: A review. Journal of Traditional and Complementary Medicine. 7. 10.1016/j.jtcme.2016.02.003.। दवा ह्रदय रोग जैसे -इस्केमिक हृदय रोग (Ischemic Heart Disease) या कोरोनरी धमनी रोग (Coronary Artery Disease), कार्डियोमायोपैथी (Cardiomyopathy) आदि रोगों में स्वस्थ्य सुधार केलिए प्रभावी साबित हुई है। अर्जुन ह्रदय संबंधी बीमारियों के जोखिम को करने के साथ-साथ हृदय को मजबूत व स्वस्थ रखने में मदद करता है।
अर्जुन की छाल का उपयोग ह्रदय संबंधी बीमारियों के अतिरिक्त बाहरी उपयोग त्वचा रोगों जैसे- एक्जिमा, सोरायसिस (Psoriasis), खुजली (Itching) और चकत्ते (Urticaria) आदि का प्रबंधन करने में भी किया जाता है।
अर्जुन की पहचान, How to identify Arjuna in Hindi
अर्जुन का वृक्ष एक सदाबाहर पेड़ है इसका वृक्ष लगभग 40 से 80 फीट ऊंचा होता है। इसका तना बाहर से सफेद रंग का व अंदर से रक्त वर्ण (या भूरा) का होता है। इसके पत्ते लगभग 4 से 6 इंच लंबे होते हें। इसमें पुष्प ग्रीष्म ऋतु में आते हें जोकि सफेद या हल्के पीले रंग के होते हें और मंजरियों (Spica) में लगे होते हें। इसमें शीत या वसंत ऋतु में फल लगते हें।
अर्जुन मुख्य रूप से भारत के उप-हिमालयी इलाकों उत्तर प्रदेश, दक्षिणी बिहार, छोटा नागपुर, बर्मा, मध्य प्रदेश, दिल्ली में जंगलों, नदियों, नालों और शुष्क जल निकायों के के पास पाया जाता है। यह लगभग हर तरह की मिट्टी में उगता है लेकिन अधिकतर नम, उपजाऊ दोमट और लाल मिट्टी में पाया जाता है।
अर्जुन का रासायनिक संघटन, Chemical composition of Arjuna
अर्जुन की छाल में मुख्यरूप से ट्राइटरपीनोइड्स, अर्जुनिक अम्ल (Arjunic acid), अर्जुनिन (arjunin), अर्जुनोलिक अम्ल (arjunolic acid, टेरमिनिक अम्ल (terminic acid) होता है। इसके अतिरिक्त β-सिटोस्टेरॉल, फ्लेवोनोइड्स, ग्लाइकोसाइड्स, टेनिन (Tannin), कैल्सियम, पोटैशियम, मैग्नीसियम, सिलिका, जिंक आदि भी होता है।
आधुनिक अध्ययनों से इन सभी पादप संघटकों को अर्जुन के लाभकारी एंटीऑक्सिडेंट, कार्डियोवैस्कुलर, रक्तचाप कम करने, एंटीप्लेटलेट, हाइपोलिपिडेमिक, एंटीथेरोजेनिक और एंटीहाइपरट्रॉफिक सहित कई औषधीय गुणों के लिए जिम्मेदार माना जाता है2Maulik SK, Talwar KK. Therapeutic potential of Terminalia arjuna in cardiovascular disorders. Am J Cardiovasc Drugs. 2012;12(3):157-163. doi:10.2165/11598990-000000000-00000।
आयुर्वेद के अनुसार अर्जुन के गुण Qualities of Arjuna According to Ayurveda in Hindi
- रस (taste) — कषाय (astringent)
- गुण (quality) — लघु (Light and easy to digest), रुक्ष (dry)
- वीर्य (potency) — शीत (cold potency)
- विपाक (Taste after digestion) — कटु (pungent)
- प्रभाव (effect) — हृद्य यानि हृदय के लिए हितकर (Good for heart)
- त्रिदोष पर प्रभाव या दोषकर्म (effect on Tridosha) — यह कफ और पित्त दोषों को शांत करता है।
- वानस्पतिक नाम — टर्मिनेलिया अर्जुन (Terminaliya arjuna)
- फॅमिली — कॉम्ब्रेटेसी (combretaceae)
अर्जुन अन्य के नाम (common names) —
- संस्कृत नाम — अर्जुन, धवल (बाहरी त्वचा सफेद होने के कारण), ककुभ (विस्तृत होने के कारण), इन्द्रद्रु (बड़ा पेड़ होने से), वीर वृक्ष (तना मजबूत होने से),नदीसर्ज (नदी-नालों के किनारे अधिक पाये जाने से, इनके अतिरिक्त फाल्गुन, धनंजय, पार्थ, वीरांतक, पांडव आदि अर्जुन के संस्कृत नाम हें।
- हिन्दी नाम — अर्जुन , काहू, कहुआ
- कन्नड़ नाम — मड्डी (Maddi), होलेमट्टी (Holematti),निरमथी (Nirmathi), बिल्लीमड्डी (Billimaddi)
- तमिल नाम — अट्टूमारूतू (Attumarutu), मरुदु (Marudu), वेल्लईमरुदु (Vellaimarudu), निरमारूदु (Nirmarudu)
- ओड़िया नाम — ओर्जुनो (Orjuno)
- पंजाबी और उर्दू नाम — अर्जन (Arjan)
- गुजराती — अर्जुन (Arjun), सादादो (Sadado), अर्जुनसदारा (Arjunsadara)
- मराठी — अंजन (Anjan), सावीमदात (Savimadat)
- मलयालम — वेल्लामरुटु (Velamarutu)
- बंगाली — अर्जुन गाछ (Arjun Gach), अरझान (Arjhan)
- अंग्रेजी — Arjuna, White murdah
अर्जुन व अर्जुन छाल के फायदे, Arjuna and its bark benefits in Hindi
आयुर्वेद में, अर्जुन की छाल का उपयोग मुख्य रूप से हृदय रोगों के उपचारात्मक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसके फल, पत्तियों, व जड़ों में भी औषधीय गुण होने से इनका भी उपयोग किया जाता है।
आयुर्वेद में अर्जुन को ह्रद्य यानि हृदय के लिए हितकर (cardiac tonic), स्तंभन (रक्त स्राव रोकने वाला), रक्त प्रसादन (रक्त शोधक), प्रमेह हर यानि मधुमेह नाशक (anti diabetic), मूत्रसंग्रहणीय (anti diuretic), संधानीय (घाव ठीक करने वाला), व्रण रोपण (घाव भरने वाला), मेदोहर (मोटापे को कम करता है), रक्त विकार (blood disorders), छाती की जलन (burning sensation on chest), रक्त पित्त (Haemoptysis), कंडु (खुजली ठीक करता है) आदि रोगों में उपयोगी बताया गया है।
इनके अतिरिक्त अर्जुन व इसकी छाल का उपयोग का उपयोग मूत्र विकारों, प्रमेह (Diabetes), रक्तपित्त (Haemoptysis), रक्तातिसार (Dysentery), क्षयज कास, रक्तप्रदर (Metrorrhagia) , श्वेतप्रदर (Leukorrhea), रक्तार्श (bleeding piles), सूजन (Inflammation), त्वचारोग (skin disorders) व रक्त की कमी से होने वाली सामान्य दुर्बलता में भी प्रयोग किया जाता है।
हृदय रोग में अर्जुन के फायदे, Arjuna benefits in Heart disease in Hindi
आयुर्वेद के अनुसार हृदय रोग (heart disease) कफ, वात व पित्त दोष के विकृत होने के कारण होता है जो स्रोतों में अवरोध (obstruction of heart channels) करके हृदय के कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हें।
अर्जुन कफ व पित्त दोष से संबन्धित रोगों को शांत करता है। आयुर्वेद में अर्जुन छाल का उपयोग मुख्य रूप से हृदय व रक्त संबंधी बीमारियो के इलाज में किया जाता है। यह ह्रद्य (हृदय के लिए हितकर होता है)। इसके उपयोग से हृदय की मांसपेशियों को बल व पोषण मिलता है। हृदय की मांस पेशियाँ मजबूत होती हें और रक्त शिराओं व धमनियों का संकोच होता है जिससे अवरुद्ध रक्त प्रवाह में सुधार होता है। यह हृदय गति को भी सामान्य करने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त यह हार्ट अटैक के जोखिमों को भी कम करता है।
आधुनिक प्रायोगिक और नैदानिक अध्ययनों द्वारा भी अर्जुन को ह्रदय संबंधी बीमारियों में एक प्रभावी दवा के रूप में बताया है3Dwivedi S, Chopra D. Revisiting Terminalia arjuna – An Ancient Cardiovascular Drug. J Tradit Complement Med. 2014;4(4):224-231. doi:10.4103/2225-4110.139103। हाल के अध्ययनों के अनुसार अर्जुन में एंटी-इस्केमिक, एंटीऑक्सिडेंट, हाइपोलिपिडेमिक और एंटीथेरोजेनिक गुण होते हैं। और इसे लाभकारी एंटीऑक्सीडेंट, कार्डियोवैस्कुलर गुणों के लिए जिम्मेदार माना गया है।
अध्ययन में दवा ने इस्केमिक हृदय रोग (Ischemic Heart Disease) अथवा कोरोनरी धमनी रोग (Coronary Artery Disease), कार्डियोमायोपैथी (Cardiomyopathy) पर आशाजनक प्रभाव दिखाया है4Kapoor, D., Vijayvergiya, R., & Dhawan, V. (2014). Terminalia arjuna in coronary artery disease: ethnopharmacology, pre-clinical, clinical & safety evaluation. Journal of ethnopharmacology, 155(2), 1029–1045. https://doi.org/10.1016/j.jep.2014.06.056।
एनजाइना में अर्जुन के फायदे, Arjuna benefits in Angina in Hindi
एनजाइना यानि हृदय में रक्त भार कम होने से संबंधित सीने में दर्द (angina pectoris or ischemic chest pain) जो करोनरी धमनी रोग का लक्षण है। यह आम तौर पर हृदय की मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों के संकुचित हो जाने के कारण होता है। जो वसायुक्त पदार्थों जेसे- उच्च कोलेस्ट्रॉल आदि के कारण होता है इसे एथेरोस्क्लेरोसिस कहते हैं।
पेट का मोटापा उच्च कोलेयट्रोल होने के मुख्य कारणों में से एक है जो आगे एनजाइना, कोरोनरी धमनी रोग या इस्केमिक हृदय रोग (coronary artery disease or ischemic heart disease) के जोखिमों का कारण बंता है।
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आयुर्वेद के अनुसार एनजाइना कफ और वात दोष के प्रकुपित होने के कारण होता है। अधिक कफ वर्धक आहार विहार के कारण कफ दोष प्रकुपित होता है, जो शरीर व हृदय के श्रोतासों (body and heart channels) में अवरोध उत्पन्न करता है, वहीं वात दोष के प्रकोप ओर प्राकृतिक गति न होने के कारण यह सिने में सर्द, भारी आदि लक्षण उत्पन्न करता है।
अर्जुन ह्रद्य (cardiotonic) होने के कारण बढ़े हुये कफ दोष हो शांत करता है। यह हृदय नलिकाओं की रुकावट को दूर करता है और वात दोष भी शांत हो जाता है, जिससे सिने में दर्द भारीपन आदि की समस्या दूर हो जाती है।
हाल के अध्ययनों से भी पता चलता है कि अर्जुन की छाल कोर्टिसोल (Cortisol) जिसे (तनाव हार्मोन भी कहते हें) के स्तर को कम करके सीने में दर्द को कम करने में सहायक है5Bharani, A., Ganguli, A., Mathur, L. K., Jamra, Y., & Raman, P. G. (2002). Efficacy of Terminalia arjuna in chronic stable angina: a double-blind, placebo-controlled, crossover study comparing Terminalia arjuna with isosorbide mononitrate. Indian heart journal, 54(2), 170–175.। अर्जुन एचडीएल (अच्छा कोलेस्ट्रॉल) के स्तर में सुधार करता है व एलडीएल (जिसे बुरा कोलेस्ट्रॉल भी कहते हें) के स्तर को कम करने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त अर्जुन का उपयोग स्थिर एनजाइना वाले लोगों में रक्तचाप को कम करने में भी मदद करता है।
दस्त में अर्जुन के फायदे Arjuna benefits in Diarrhea in Hindi
अर्जुन छाल का उपयोग दस्त (diarrhoea) में भी फायदेमंद बताया गया है। आयुर्वेद में डायरिया को अतिसार नाम से जाना जाता है। अतिसार (diarrhoea) और रक्ततिसार (infectious diarrhoea or Dysentery ) आम तौर पर अशुद्ध भोजन, अशुद्ध पानी, विषैले पदार्थों, जीवाणु और विषाणु संक्रमण, मानसिक तनाव और जठराग्नि के मंद होने के कारण होता है। परिणामस्वरूप दस्त के साथ-साथ में मल में चिपचिपा पदार्थ या रक्त आता है।
अर्जुन में जीवाणुरोधी (antibacterial) गुण होने से अर्जुन छाल का उपयोग रक्तातिसार (infectious diarrhoea) व अतिसार (diarrhoea) के प्रबंधन में फायदेमंद है साथ ही यह दस्त की आवृत्ति को नियंत्रित करने में भी सहायक है।
कास रोग में अर्जुन के लाभ, Arjuna benefits in bronchitis in hindi
अर्जुन श्वसन मार्ग संबंधी विकारों जैसे- कास (bronchitis), अस्थमा (asthma) आदि में भी फायदेमंद है आयुर्वेद के अनुसार कास रोग का कारण कफ की वृद्धि और अग्नि मंद होने के कारण होता है। अग्नि मंद होने से आम (बिना पचा हुआ भोजन जो विषैला होता है) बनता है, जिससे यह फेफड़ों में श्लेष्मा के रूप में जमा होकर स्रोतों को अवरुद्ध करता है ओर कास उत्पन्न करता है।
अर्जुन कफ को शांत करता है और यह आम को दूर करता है जिससे फेफड़ों में जमा श्लेष्मा का नाश होता है, फलस्वरूप यह कास रोग को शांत करता है। इसके अतिरिक यह क्षयरोग (tuberculosis) में भी उपयोगी है।
कान दर्द में अर्जुन के लाभ, Arjuna benefits in earache
अर्जुन में रोगाणुरोधी (antibacterial) और सूजन-रोधी (anti inflammatory) गुण होते हें जिससे यह जो सूक्ष्मजीवों के विकास को रोकता है। इसलिए अर्जुन की छाल कान के संक्रमण (ear infection) के कारण होने वाले दर्द में उपयोगी है। इसका सूजन-रोधी गुण संकर्मण के कारण कान के दर्द को कम करने मैं मदद करता है। अर्जुन के रोगाणुरोधी और सूजन-रोधी गुणों को भी आधुनिक अध्ययनों द्वारा सत्यापित किया गया है।
मूत्र मार्ग संक्रमण में अर्जुन के लाभ, Arjuna benefits in Urinary Tract Infection
अर्जुन में जीवाणुरोधी (antibacterial) गुण होते हैं जिससे यह मूत्र मार्ग के संक्रमण को कम करता है। अर्जुन बार-बार मूत्र आना जैसे लक्षणों को भी कम करता है। आधुनिक अध्ययन ने भी मूत्र मार्ग संक्रमण में अर्जुन को फायदेमंद बताया है6Amalraj A, Gopi S. Medicinal properties of Terminalia arjuna (Roxb.) Wight & Arn.: A review. J Tradit Complement Med. 2016;7(1):65-78. Published 2016 Mar 20. doi:10.1016/j.jtcme.2016.02.003।
इसके अतिरिक्त अर्जुन का उपयोग मूत्र कृछ यानि दर्दनाक पेशाब (dysuria) में भी लाभकारी है। अर्जुन गुण में शीत (ठंडा) होने से मूत्र में जलन को भी कम करता है।
रक्तप्रदर में अर्जुन के फायदे, Arjuna benefits in Metrorrhagia in hindi
रक्तप्रदर (Metrorrhagia) महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान अनियमित व असामान्य रक्त स्राव (excessive bleeding) की स्थिति है। जिसमें गर्भाशय से रक्तस्राव का प्रवाह अनियमित व सामान्य से अधिक मात्रा में होता है। अर्जुन की छाल और सफेद चंदन के क्वाथ (काढ़ा) का उपयोग करने से यह रक्तप्रदर में रक्त स्राव के जोखिम को कम करता है। इसमें स्तंभन, शीत व कषाय गुण होने से यह पित्त को शांत करता है व रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है।
शुक्रमेह में अर्जुन के फायदे, Arjuna benefits in Spermatorrhoea in Hindi
स्पर्मेटोरिया को आयुर्वेद में शुक्रमेह कहते हें, यह पुरुषों में अनैच्छिक, वीर्य की अत्यधिक हानि की स्थिति है। अर्जुन कषाय होने के कारण व स्तंभन गुण के कारण यह अज्ञान्त वीर्य क्षय, रक्तस्राव आदि को रोकने में मदद करता है।
अर्जुन की छाल और सफेद चंदन के काढ़े (क्वाथ) का उपयोग शुक्रमेह (Spermatorrhoea) में भी फायदेमंद है।
अस्थि भंग में अर्जुन के लाभ, Arjuna benefits in bone fracture in Hindi
आयुर्वेद में अर्जुन को संधानीय यानि घाव ठीक करने वाला व व्रणरोपण कहा गया है जिससे यह टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने के साथ साथ घाव ठीक करने में भी सहायक है। अस्थिभग्न (fracture) अथवा हड्डी के टूटने पर अर्जुन की छाल का सेवन दूध के साथ किया जाता है।
इसके अलावा टूटी हड्डी के स्थान पर अर्जुन की छाल का लेप भी हड्डियों का पुनर्निर्माण और फ्रैक्चर को ठीक करता है।
मधुमेह में अर्जुन के फायदे, Arjuna benefits in Diabetes in Hindi
आयुर्वेद में मधुमेह ( Diabetes mellitus) प्रमेह के अंतर्गत आता है। यह एक कफ प्रधान रोग है। आयुर्वेद के अनुसार, अधिक सुख पूर्वक जीवनशैली, शारीरिक श्रम की कमी, अधिक भोजन, व अधिक दिन मे शयन, अधिक मांस-दही का सेवन, आलस्य और कफ वर्धक आहार व विहार के सेवन से मेद वृद्धि (अधिक वसा अथवा मोटापा) होने से मधुमेह रोग होता है।
मधुमेह में, शरीर शर्करा (ग्लूकोज) को ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए इंसुलिन का उपयोग करने में असमर्थ होता है।
परिणामस्वरूप रक्त में रक्त शर्करा (Glucose) का स्तर बहुत अधिक (High blood sugar) हो जाता है यदि चिकित्सा न की जाये तो यह गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है।
आयुर्वेद में पित्तज प्रमेह में अर्जुन की छाल को लाभकारी बताया गया है, इसके साथ साथ यह बार बार मूत्र आना जैसी समस्या में भी फायदा देता है।
इन सभी के अतिरिक्त अर्जुन का उपयोग कुष्ठ रोग (skin disorders), खुजली (itching) व्रण (घाव), मुंह के छाले (mouth ulcer), सूजन (Inflammation), रक्तपित्त (Haemoptysis) बुखार (Fever), छाती की जलन (Burping sensation on chest) आदि में भी फायदेमंद है।
अर्जुन व अर्जुन छाल का इस्तेमाल कैसे करें How to use Arjuna and its bark in Hindi
अर्जुन को चूर्ण (पाउडर) और क्वाथ (काढ़े) के रूप में दूध या पानी के साथ लेने से हृदय से संबन्धित कई बीमारियों में राहत मिलती है।
- अर्जुन की छाल का 1 चम्मच बारीक चूर्ण या फिर 10 से 20 मिलिलीटर अर्जुन क्वाथ को लगभग एक कप दूध में मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने पर यह सभी प्रकार के हृदय रोगों में लाभ देता है। इसके नियमित प्रयोग से यह कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्त चाप (high blood pressure), दिल से संबंधित सीने में दर्द (angina), सिने में जलन (burning sensation on chest) आदि में फायदा मिलता है। इनके साथ-साथ यह से हृदय को बल देता है, दिल की धड़कन को भी सामान्य करता है। और गंभीर स्थितियों जेसे- हार्ट अटैक के जोखिमों को भी कम करता है।
- डायरिया में 10 से 20 मिलिलीटर अर्जुन क्वाथ को शहद अथवा पानी के साथ लेने से यह डायरिया को कंट्रोल करने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त डायरिया को कंट्रोल करने के लिए अर्जुन चूर्ण को गाय के दूध में पकाकर भी लिया जा सकता है।
- अर्जुन क्वाथ को दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से कास रोग (ब्रोंकाइटिस) में लाभ होता है।
- 3 से 5 चम्मच अर्जुन क्वाथ को एक कप दूध में मिलाकर पीने से मूत्र मार्ग संक्रमण में (Urinary Tract Infection) में लाभ होता है।
- अर्जुन की छाल (चूर्ण) और सफेद चन्दन का क्वाथ पुरुषों में शुक्रमेह (Spermatorrhoea) में और स्त्रियों में रक्तप्रदर (Metrorrhagia) और श्वेतप्रदर (Leukorrhea) में फायदेमंद है।
- अस्थि भंग (bone fracture) यानि हड्डी के टूट जाने पर अर्जुन की छाल का सेवन दूध के साथ करने पर यह टूटी हुई हड्डी को जोड़ने में मदद करता है। इसके अलावा टूटी हड्डी के स्थान पर अर्जुन की छाल का लेप भी हड्डी जोड़ने में सहायक है।
- पित्तज-प्रमेह में अर्जुन, नीम व आँवले की छाल और हल्दी, नीलकमल इन सभी के बराबर मात्र में चूर्ण को जल में पकाकर काढ़ा बनाकर और उसमें मधु मिलाकर पीने से यह पित्तज-प्रमेह में लाभकारी होता है।
- बुखार के लिए अर्जुन छाल का काढ़ा या अर्जुन की छाल की चाय फायदेमंद है।
- अर्जुन छाल चूर्ण को शहद में मिलकर चेहरे पर लगाने से यहा पिम्पल्स (Pimples), एलर्जी आदि को दूर करता है।
अर्जुन के नुकसान, Arjuna side effects in hindi
- अभी तक, अर्जुन के चिकित्सीय उपयोग से सम्बंधित कोई भी गंभीर दुष्प्रभाव नहीं बताया गया है। यह ह्रदय से सम्बंधित रोगों जैसे- एनजाइना पेक्टोरिस, उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल (डिस्लिपिडेमिया) में काफी उपयोगी पाया गया है। इसके अतिरिक्त अर्जुन के जीवाणु रोधी व सूजन-रोधी गुणो को अनेक रोगों में प्रभावी पाया गया है।
- यदि आप थक्कारोधी (anticoagulants) या रक्त को पतला करने वाली दवाओं (blood thinners) का सेवन कर रहे हें तो अर्जुन का उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह लें क्योंकि आधुनिक अध्यानों के मुताबिक अर्जुन थक्कारोधी या रक्त को पतला करने वाली दवाओं के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है।
- स्तनपान करने वाली महिलाओं को आमतौर पर अर्जुन को ना लेने की सलाह दी जाती है।
- अर्जुन रक्त शर्करा के स्तर को कम कर सकता है इसलिए यदि आप शुगर से संबन्धित दवाओं का उपयोग कर रहे हें तो अर्जुन के उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह लें।
- गर्भवती महिलाओं को भी आमतौर पर अर्जुन के उपयोग से बचने की सलाह दी जाती है।
- अर्जुन बढ़ी हुई हृदय गति को कम कर सकता है। इसलिए ह्रदय गतियों में निम्नता लाने के कारण निम्न रक्त चाप (low blood pressure) वाले व्यक्तियों में इसको ना लेने की सलाह दी जाती है।
- इनके अलावा अर्जुन का उपयोग सीमित मात्रा में व चिकित्सक की सलाह पर ही उपयोग करना बेहतर है। अधिक मात्र में सेवन करने से कब्ज, निम्न रक्त चाप (low blood pressure), रक्त शर्करा के स्तर में कमी (hypoglycemia)आदि लक्षण उत्पन्न हो सकते हें।
अर्जुन सेवन विधि/मात्रा Arjuna recommended dose in Hindi
यदि आप किसी बीमारी के प्रबंधन के लिए अर्जुन का उपयोग कर रहे हैं, तो आपको आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।
- क्षीरपाक में (यानि दूध के साथ पकाने पर) — 5-10 ग्राम।
- रस — 5-10 मिलिलीटर, या चिकित्सक के परामर्श के अनुसार।
- क्वाथ (काढ़ा) — 50-100 मिलीग्राम, या चिकित्सक द्वारा निर्धारित।
- चूर्ण —2-6 ग्राम, या चिकित्सक के निर्देशानुसार।
- टैबलेट – 1 गोली दिन में दो बार या चिकित्सक परामर्श अनुसार।
क्या अर्जुन प्रजनन क्षमता में सुधार करता है?
हाँ, अर्जुन प्रजनन क्षमता में सुधार करने में उपयोगी है। अर्जुन की छाल में एंटीऑक्सीडेंट और जिंक जैसी धातुएं होती हैं। यह नए शुक्राणु कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाने में मदद करता है इसके साथ ही यह शरीर को पुष्ट करता है तथा समग्र शक्ति में सुधार करने में भी मदद करता है।
क्या अर्जुन पाउडर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है?
हाँ, अर्जुन एक इम्यूनोमॉड्यूलेटर के रूप में शरीर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक है। हाल के अध्ययनों में अर्जुन में इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एजेंट होने के संकेत मिलें हें7Gaherwal, S., Anare, R., & Wast, N. (2014). Immunomodulatory Efficacy of Terminalia arjuna Against Aspicularis tetraptera in Mice., यह एक अच्छा इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एजेंट हो सकता है और मेजबान (host) की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ा सकता है।
क्या अर्जुन खूनी बवासीर (bleeding piles) के इलाज में सहायक है?
हाँ, अर्जुन गुण में कषाय (कसैला) होता है जिससे यह खूनी बवासीर (bleeding piles) के इलाज में फायदेमंद है। यह शीत (ठंडा) होने के कारण बवासीर में होने वाले दर्द से भी राहत देता है। इसको सीमित मात्रा में व चिकित्सक की सलाह पर ही सेवन करना चाहिए अन्यथा यह कब्ज भी उत्पन्न कर सकता है।
References
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