इम्यूनोमॉड्यूलेटर्स को स्वास्थ्य और बीमारी के प्रबंधन में सबसे शक्तिशाली दवाओं में से एक माना जाता है। सुवर्णप्राशन एक प्राचीन टीकाकरण तकनीक है जिसका उद्देश्य बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ाना और समग्र रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है।
आयुर्वेद में, इम्यूनोमॉड्यूलेशन सदियों से मौजूद है। सदियों से आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा भी इसका अभ्यास किया जाता रहा है। आयुर्वेदिक दवा रोग पैदा करने वाले एजेंट को सीधे बेअसर करने के बजाय शरीर की समग्र रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने पर निर्भर करती है।
“व्याधि-क्षमत्व” की आयुर्वेदिक अवधारणा आधुनिक चिकित्सा में प्रयुक्त “प्रतिरक्षा” शब्द से कहीं अधिक व्यापक है। आयुर्वेदिक उपचार का उद्देश्य रसायन और वजीकरण उपचारों के साथ-साथ ओज वर्धक उपचारों का उपयोग करके रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है।
सुवर्णप्राशन या सुवर्णबिन्दु प्राशन क्या है ? What is Suvarna Prashan in hindi
सुवर्णप्राशन या सुवर्ण बिन्दु प्राशन प्राचीन शास्त्रों में वर्णित सोलह संस्कारों में से एक है। सुवर्णप्राशन का अर्थ है सुवर्ण का प्राशन कराना, जिसमें सोने को को तरल रूप में शहद और घी मिलाकर बच्चे को चटाया जाता है। स्वर्ण प्राशन का सेवन करने वाला बच्चा बल, कान्ति, बेहतर बुद्धि, पाचन और चयापचय, शक्ति, रोग प्रतिरोधक क्षमता, प्रजनन क्षमता और दीर्घायु से लाभान्वित होता है।
आयुर्वेद में सुवर्णप्राशन का प्रयोग बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता, बल और स्मृति को बढ़ाने के लिए वर्णित एक रसायन है। स्वर्ण प्राशन में, सोने के कणों को शहद, घी और अन्य जड़ी-बूटियों द्वारा समाहित किया जाता है। आधुनिक अध्ययनों ने भी सुवर्णप्राशन की इम्युनोमोड्यूलेटिंग गतिविधि का समर्थन किया हैं1Nelaturi P, Nagarajan P, Sabapathy SK, Sambandam R. Swarna Bindu Prashana-an Ancient Approach to Improve the Infant’s Immunity. Biol Trace Elem Res. 2021;199(6):2145-2148. doi:10.1007/s12011-020-02353-y।
सुवर्णप्राशन शास्त्रों में वर्णित सबसे प्राचीन टीकाकरण अभ्यासों मे से एक है। सुवर्ण प्राशन बैक्टीरिया और वायरल संक्रमण से भी सुरक्षा देता है। यह श्वसन मार्ग संबंधी संक्रमण और सामान्य सर्दी और फ्लू से बचाता है। आजकल स्वर्ण प्राशन संस्कार को टिककरण कार्यक्रम के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
कश्यप संहिता में सुवर्णप्राशन का मुख्य रूप से उल्लेख मिलता है। आचार्य कश्यप कौमारभृत्य (बाल रोग विज्ञान ) के प्रमुख वर्णन करता हैं। जिन्होंने सुवर्णप्राशन विधि और इसके लाभों का विस्तार से वर्णन किया है।
सुवर्णप्राशन के घटक द्रव्य
- वाचा
- गिलोय
- शंख पुष्पी
- ब्राह्मी
- विडंग
- पिप्पली
- कुथ
- स्वर्ण भस्म
- शुद्ध शहद
- मरिच
- शुण्ठी
- शुद्ध गाय का घी
- अश्वगंधा
- आमलकी
सुवर्णप्राशन में स्वर्ण, घृत व शहद मुख्य घटक के रूप में मिलाये जाते हें, इनके अतिरिक्त अन्य स्मृतिवर्धक व रसायन औषधियाँ सुवर्णप्राशन को औ भी अधिक गुणकारी बनती हें।
सुवर्णप्राशन बनाने की विधि
- नोट: आचार्य कश्यप ने आंतरिक उपयोग से पहले स्वर्ण (सोना) के शुद्धिकरण का महत्व बताया है, इसलिए आंतरिक उपयोग से पहले सोने को पूर्ण रूप से शुद्ध किया जाना चाहिए।
पारंपरिक विधि से सुवर्ण प्राशन औषध तैयार करने के लिए शुद्ध सोने को शुद्ध जल में पत्थर (सिलबट्टे) पर रगड़ा जाता है। इस प्रकार, महीन पतला पेस्ट प्राप्त होता है।बच्चों को यह पेस्ट देने के लिए इसमें शहद और घी मिलाया जाता है।
ध्यान रहे आयुर्वेद के अनुसार घी और शहद को समान मात्रा (अनुपात) में नहीं लिया जाना चाहिए यह आहार और संयोग वीरुध है।
आजकल स्वर्ण भस्म का उपयोग स्वर्ण प्राशन में किया जाता है, जो कि अधिक सुरक्षित, प्रभावी और बाजार में आसानी से उपलब्ध है।
सुवर्णप्राशन की मात्रा
- 6 महीने तक के शिशु: के लिए रोजाना 1 बूंद / 2 बूंद।
- 6 महीने से 2 वर्ष तक के बच्चों रोजाना 2 बूंद ।
- 2 से 10 वर्ष तक के बच्चों को 4 बूँद रोजाना।
- 10 साल से अधिक आयु : रोजाना 6 बूँदें।
- जन्म तुरंत बाद दी गयी एकल खुराक भी प्रभावी हो सकती है।
- आमतौर पर सुबह-सुबह खाली पेट दी जाने वाली इस सिरप को जन्म से लेकर 16 साल की उम्र तक दिया जा सकता है।
- काश्यप संहिता के अनुसार कुशाग्र बुद्धि एवं रोग परतिरोधक क्षमता के विकास के लिए के लिए 30 दिनों से 6 महीने तक नियमित रूप से प्रयोग करें।
सुवर्णप्राशन के फायदे, Suvarna Prashan benefits in Hindi
कश्यप संहिता में कहा गया है कि स्वर्ण प्राशन के एक महीने के सेवन से बच्चे रोग से प्रभावित नहीं होते, बहुत बुद्धिमान हो जाते हैं, और अगर वह इसे छह महीने तक लेते रहें, तो बच्चा जल्दी से सीखने और जो कुछ भी सुनते हें उसे याद रखने की क्षमता रखते हें।
संस्कृत श्लोक –
सुवर्णप्राशन हि एतत मेधाग्निबलवर्धनम् ।
— सूत्रस्थानम्, काश्यपसंहिता
आयुष्यं मंगलमं पुण्यं वृष्यं ग्रहापहम् ॥
मासात् परममेधावी क्याधिभिर्न च धृष्यते ।
षडभिर्मासै: श्रुतधर: सुवर्णप्राशनाद् भवेत् ॥
काश्यपसंहिता में वर्णित सुवर्णप्राशन संस्कार के निम्नलिखित लाभ हैं।
- “मेधाग्निबलवर्धनम् “ कुशाग्रता (increases sharpness), बुद्धि (Intellect), शक्ति अथवा बलवर्धक व स्मरण शक्ति का विकास करता है। शरीर को मजबूत (दृढ़ ) बनाता है (makes the body strong)।
- “आयुष्यं “ आयु बढ़ाने वाला (Increases longevity)
- “मंगलमं” मंगल करने वाला (auspicious)
- “पुण्यं” पुण्य कारक (righteous)
- “वृष्यं “/ “वाजीकर” प्रजनन क्षमता का विकास करता है (aphrodisiac)
- “ग्रहापहम“ ग्रहों के बुरे प्रभाव और बीमारी उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा करता है (protects against microbes and evil spirits)
- “वर्ण्य” त्वचा की रंगत को बढ़ाता है (enhances skin tone)
- “मासात् परममेधावी” यदि 1 महीने तक लिया जाता है, तो बच्चा परम मेधावी (अत्यधिक बुद्धिमान) और रोगों से आक्रांत नहीं होता है।
- “षडभिर्मासै: श्रुतधर:” यदि 6 महीने तक लिया जाता है , तो बच्चा जल्दी से सीखने और जो कुछ भी सुनते हें उसे याद रखने की क्षमता रखते हें।
कश्यप संहिता में सुवर्ण लेहन के लाभों का वर्णन करते हुए आचार्य कश्यप का मत है कि एक महीने तक तरल सोने को शहद और घी के साथ चटाने के बाद बच्चे रोगों से आक्रांत नहीं होते, और इससे बच्चों पर ग्रहों का बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ता इसका तात्पर्य यह है कि स्वर्णप्राशन से बच्चों में कृत्रिम रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है जिससे बच्चे जल्दी रोगों से आक्रांत नहीं होते।
प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है
स्वर्ण भस्म शरीर की इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गतिविधि को बढ़ाने के लिए जाना जाता है। आयुर्वेद में इसका प्रयोग रसायन के रूप में किया जाता है। क्योंकि यह रसायन के रूप में काम है, और विषम ज्वर, आंत्र ज्वर, कमजोरी आदि को दूर करता है। वर्तमान अध्ययन दर्शाता है कि स्वर्ण प्राशन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है।
पाचन शक्ति में सुधार करता है
स्वर्ण प्राशन भोजन से खनिजों और पोषक तत्वों के बेहतर अवशोषण को बढ़ावा देता है। स्वर्णप्राशन का सेवन करने वाले बच्चे बेहतर पाचन, भूख और रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ बढ़ते हैं।
त्वचा को पोषण देता है और त्वचा की रंगत को बढ़ाता है
स्वर्ण प्राशन विषहरण द्वारा शरीर से विषाक्त पदार्थों को समाप्त करता है। यह रक्त परिसंचरण और त्वचा के रंग में सुधार करता है जिससे स्वस्थ चमक पैदा होती है।
बुद्धि और स्मृति को बढ़ाता है
स्वर्ण भस्म तंत्रिका उत्तेजक के रूप में कार्य करती है। स्वर्ण प्राशन कम रोग प्रतिरोधक क्षमता, कम बुद्धि, कम स्मरण शक्ति और डिस्लेक्सिया (लर्निंग डिसऑर्डर) वाले बच्चों में स्वर्णप्राशन अधिक लाभकारी है। यह स्मृति व बुद्धि का विकास करता है और बच्चे को बेहतर प्रतिरक्षा प्रणाली और बौद्धिक प्रदर्शन के साथ बड़ा होने में मदद करता है।
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है
स्वर्ण भस्म तंत्रिका उत्तेजक के रूप में कार्य करती है। प्रतिरक्षा प्रणाली की उत्तेजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए, यह शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य के साथ एक अच्छा जीवन प्रदान करता है।
स्वर्ण प्राशन के लिए पुष्य नक्षत्र का महत्व
आयुर्वेद के अनुसार स्वर्णप्राशन को प्रतिदिन अथवा पुष्य नक्षत्र में लिया जाना चाहिए। पुष्य 27 नक्षत्रों में से एक है। सुवर्णप्राशन शुरू करने के लिए पुष्य नक्षत्र अत्यधिक कल्याणकारी माना जाता है।
इस दिन सुवर्णप्राशन का सेवन क्रिया की दृष्टि से बहुत प्रभावशाली सकारात्मक परिणाम देने वाला होता है।
अनुसंधान और परीक्षण
अपरिपक्व शिशु में प्रतिरक्षा, वृद्धि और विकास के संदर्भ में सुवर्णप्राशन की प्रभावकारिता पर एक शोध किया गया।
इस शोध में 0-3 वर्ष आयु वर्ग के चालीस प्रीटरम शिशुओं को 20 के 2 समूहों में विभाजित किया गया। जिसमें प्रथम 20 शिशुओं के समूह को प्रत्येक पुष्यनक्षत्र पर मासिक रूप से सुवर्णप्राश की चार बूंदें दी गईं, जबकि अन्य २० शिशुओं के समूह को कोई दवा नहीं दी गई। 6 महीने के अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि सुवर्णप्राशन प्राप्त करने वाले शिशुओं में होने वाले हल्के संक्रमणों की संख्या सुवर्णप्राशन प्राप्त न करने वाले शिशुओं तुलना में कम थी। सुवर्णप्राशन प्राप्त करने वाले शिशुओं में बीमारी की औसत अवधि 3.9 दिन थी जबकि सुवर्णप्राशन प्राप्त न करने वाले शिशुओं में यह 2.75 दिन थी, यह बीमारियों के ठीक होने में सकारात्मक परिणाम दिखाती है। सुवर्णप्राशन प्राप्त करने वाले शिशुओं में रोगों की पुनरावृत्ति केवल 10% थी जबकि सुवर्णप्राशन प्राप्त न करने वाले शिशुओं में 25% थी2Rathi, Renu & Rathi, Bharat. (2009). Efficacy of in Preterm infants- A Comparative Pilot study Suvarnaprashan.।
सुवर्णप्राशन की प्रभाविता पर ये सकारात्मक परिणाम सुवर्णप्राशन की उपियोगिता को इंगित करते हैं।
स्वर्णप्राशन के साइड इफेक्ट/दुष्प्रभाव
- वर्तमान विषाक्तता नैदानिक परीक्षणों ने निष्कर्ष निकाला है कि स्वर्णप्राशन विषाक्तता से मुक्त है। क्योंकि इसे बनाने में उपयोग होने वाले सभी धटक द्रव्यों को उनके गैर-विषैले सत्यापन के बाद ही प्रयोग किया जाता है।
- कभी-कभी, बच्चे दवा की गंध और अलग स्वाद के कारण उल्टी कर सकते हैं। इसके अलावा और कोई साइड इफेक्ट नहीं बताया गया है।
- स्वर्ण प्राशन के लिए प्रयुक्त स्वर्ण या स्वर्ण भस्म पूर्ण रूप से शुद्ध अथवा शोधित होनी चाहिए। अनुचित उपयोग और अशुद्ध रूप में प्रशासित स्वर्ण प्राशन निश्चित रूप से शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है3Jyothy KB, Sheshagiri S, Patel KS, Rajagopala S. A critical appraisal on Swarnaprashana in children. Ayu. 2014;35(4):361-365. doi:10.4103/0974-8520.158978।
सारांश
हजारों साल पहले, आचार्य कश्यप ने बच्चों को प्रसंस्कृत सुवर्ण देने की प्रथा को ‘स्वर्णप्राशन’ के रूप में वर्णित किया।सुवर्णप्राशन स्वर्ण भस्म, शहद, घी और मेध्या (मस्तिष्क उत्तेजक) जड़ी-बूटियों से तैयार एक गाढ़ा सिरप है जो शारीरिक बल, बुद्धि, रोग प्रतिरोधक क्षमता, प्रजनन क्षमता, पाचन और चयापचय व आयु को बढ़ाता है।
References
- 1Nelaturi P, Nagarajan P, Sabapathy SK, Sambandam R. Swarna Bindu Prashana-an Ancient Approach to Improve the Infant’s Immunity. Biol Trace Elem Res. 2021;199(6):2145-2148. doi:10.1007/s12011-020-02353-y
- 2Rathi, Renu & Rathi, Bharat. (2009). Efficacy of in Preterm infants- A Comparative Pilot study Suvarnaprashan.
- 3Jyothy KB, Sheshagiri S, Patel KS, Rajagopala S. A critical appraisal on Swarnaprashana in children. Ayu. 2014;35(4):361-365. doi:10.4103/0974-8520.158978