अणु तेल एक आयुर्वेदिक नस्य तेल है जिसे अणु तैलम (Anu Thailam) भी कहते हैं। यह एक प्राचीन नस्य औषधि है जिसका उपयोग पंचकर्म नस्य चिकित्सा के अंतर्गत किया जाता है।
सिर प्रदेश से संबंधी सभी रोगों में नस्य का उपयोग एक प्रमुख व महत्वपूर्ण चिकित्सा के रूप में किया जाता है। अणु तेल को नस्य औषधि का एक श्रेष्ठ उदाहरण बताया गया है।
नस्य कर्म पंचकर्म चिकित्सा के अंतर्गत आता है नस्य का अभिप्राय है नासिका के माध्यम से दी जाने वाली औषधि।
अणु तेल 27 प्राकृतिक घटक द्रव्यों से मिलकर बना होता है जिसमें तरल घटक द्रव्य जैसे- शुद्ध जल, तिल का तेल और बकरी का दूध शामिल हैं।
अणु तेल को एक श्रेष्ठ नस्य औषध के रूप में वर्णित किया गया है, आयुर्वेद में इसे सिर प्रदेश से संबंधी सभी प्रकार के रोगों में प्रयोग किया जाता है। यह सूक्ष्म स्रोतसों में प्रवेश कर मार्ग को शुद्ध करता है अवरोध को खोलता है तथा सभी प्रकार के शिरोरोगों जैसे सर्दी- जुकाम, सिर दर्द, साइनस, बाल झड़ना, माइग्रेन इत्यादि में अत्यंत लाभकारी है।
अणु तेल नस्य को जत्रुऊर्ध्व (हंसली के ऊपर या सिर संबंधी बीमारी) में दिए जाने वाले अन्य तेलों की तुलना में अधिक उत्तम बताया गया है।
अणु तेल (Anu Thailam) नस्य कर्म कैसे काम करता है?
अष्टांग हृदय के अनुसार नाक को सिर का प्रवेश द्वार बताया गया है अर्थात नासिका मार्ग के द्वारा पहुंचाई जाने वाली औषधि मस्तिष्क तक पहुंचती है और सिर स्थित कुपित दोषों को निकल बाहर करती है।
अणु तेल को सूक्ष्मस्रोतोगामी, महागुणम, सर्वोत्तम गुणम के रूप में वर्णित किया गया है। परिणामस्वरूप यह सिर प्रदेश में स्थित सूक्ष्म स्रोतसों मैं पहुंचकर वहां स्थित अवरोध को दूर कर करता है जिससे सम्प्राप्ति विघटन होता अर्थात रोगों को बढ़ने से रोकता।
अणु तेल वात वात-पित्त शामक गुणों युक्त होता है इसका यह गुण वृद्धि को प्राप्त हुए दोषों को दूर करने में मदद करते हैं।
इसके अतिरिक्त, अणु तेल का बृंहण (पौष्टिक) गुण नासा, कर्ण, और नेत्र जिह्वा आदि इंद्रियों को पोषण व बल देकर मजबूत बनाता है और इन्द्रियों कार्य क्षमता को बढ़ाता है।
यह बाहरी संक्रमण को नासिका मार्ग द्वारा शरीर में प्रवेश करने से रोकने में सर्वाधिक प्रभावी है।
Anu Thailam Uses in hindi अणु तेल के उपयोग
अणु तेल नस्य के उपयोग का निर्देश निम्न वर्णित रोगों में दिया गया है:
- नासा रोग (नाक संबंधी विकार), उदाहरण – पीनस (प्रतिश्याय), साइनस (साइनोसाइटिस) और राइनाइटिस।
- खालित्य (बालों का झड़ना), पालित्य (बालों का असमय सफेद होना)।
- मान्या स्तम्भ (गर्दन की जकड़ाहट या टॉर्टिकोलिस), गर्दन से संबंधित एक विकार जिसमें गर्दन में अकड़न होती है और सिर का एक तरफ झुकाव आ जाता है।
- प्रतिश्याय (सामान्य सर्दी जुखाम)।
- गंध ज्ञाननाश (नाक की सूंघने की शक्ति का कमजोर होना)
- अर्दित (जिसे चेहरे का पक्षाघात या लकवा भी कहते हें)।
- शिरशूल (सिर में दर्द)।
- कर्ण शूल (कान का दर्द)।
- अर्धावभेदक (माइग्रेन सिरदर्द)।
- हनुसंग्रह (जबड़े में अकड़न या जाम होना)।
- शिरकंप (सिर में कंपन होना) और तंत्रिका संबंधी लक्षण।
- पीनस जिसे एलर्जिक रायनाइटिस भी कहते हें।
- अनिंद्रा (नींद न आना , तनाव तथा इंद्रिय संज्ञानाश।
- आवाज की गुणवत्ता और चेहरे की रंगत में सुधार के लिए।
ऊपर वर्णित इन बीमारियों के अलावा अणु तेल उपयोग कान, नाक और गले की सभी बीमारियों में फायदेमंद बताया गया है। यह त्रिदोष शामक, बृंहण (पोषण ) है तथा इंद्रियों को बल देकर मजबूत करने वाला है।
Anu Thailam Ingredients in Hindi अणु तेल के घटक
अणु तेल 27 प्रकृतिक घटक द्रव्यों से मिलकर बनता है। इसमें तरल घटक द्रव्य तिल तेल, बकरी का दूध एवं शुद्ध जल शामिल हें।
संस्कृत श्लोक-
प्राकृतिक तत्व (घटक) | वानस्पतिक नाम |
---|---|
सफेद चन्दन | Santalum album |
अगरू (अगर) | Aquilaria agallocha |
तेज पत्ता | Cinnamomum tamala |
दारुहल्दी | Berberis aristata |
मधुयष्टि या मुलेठी | Glycyrrhiza Glabra |
बला | Sida cordifolia |
प्रपौण्डरीक | Nymphaea lotus |
इलायची | Elettaria cardamomum |
विडंग या बायविडंग | Embelia ribes |
बिल्व या बेल | Aegle marmelos |
नीलकमल | Nymphaea nouchali |
सुगन्धबाला | Valeriana Officinalis |
खस | Chrysopogon zizanioides |
केवटी मोथा | Cyperus tenuiflours |
दालचीनी | Cinnamomum zeylanicum |
नागरमोथा | Cyperus rotundus |
सारिवा | Hemidesmus indicus |
शालपर्णी | Desmodium gangeticum |
जीवन्ती | Leptadenia reticulata |
पृश्निपर्णी | Uraria picta |
देवदारु (देवदार) | Cedrus deodara |
शतावरी | Asparagus racemosus |
रेणुका | Vitex agnus-castus |
बृहती | Solanum indicum |
कंटकारी | Solanum virginianum |
कुंदरु | Coccinia grandis |
पद्मकेशर | Nelumbo nucifera Gaertn |
Anu Thailam Uses, Benefits in Hindi: अणु तेल के फायदे, उपयोग
आयुर्वेद शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार नाक को सिर का प्रवेश मार्ग माना जाता है। इसलिए ऊर्ध्वजत्रु (हंसली के ऊपर के अंग) संबंधित बीमारियों के इलाज में एक अणु तेल असरदार है। यह सिर प्रदेश के सूक्ष्म स्रोतसो में प्रेवेश कर इंद्रियों को तर्पित व अवरोध को दूर करता है। यह विशेष रूप नाक कान, गले संबंधी रोगों को दूर करने में असरदार है।
अर्धावभेदक (माइग्रेन) के उपचार में अणु तेल और षडबिन्दु तेल की प्रभावकारिता पर एक तुलनात्मक आधुनिक नैदानिक अध्ययन में महत्वपूर्ण परिणाम मिले हैं।1Akhilanath Parida*; Satyasmita Jena; Varun Sawant. CLINICAL STUDY TO COMPARE THE EFFICACY OF NASYA KARMA WITH SHADBINDU TAILA AND ANU TAILA IN MIGRAINE VIS-O-VIS ARDHAVABHEDAKA. ayush 2020, 6, 2415-2422.।
इंद्रियों को पोषण, मजबूत तथा कार्य क्षमता में सुधार करता है
अणु तेल सूक्ष्मस्रोतोगामी गुणों युक्त होता है जिससे यह सूक्ष्मा स्रोतों में प्रवेश कर अवरोध को हटाता है तथा दोषों को गतिमान कर बाहर निकालता है।
इसकी बृंहण (पौष्टिक) तथा स्नेहन क्रिया सिर के महत्वपूर्ण स्थानों पर होती है जैसे- शृंगाटक मर्म। यह कर्ण, नासिका और गले को पोषण व मजबूत करता है। इस प्रकार इंद्रियों की स्पष्टता, गुणवत्ता तथा बेहतर कार्य क्षमता सुधारता है।
जैसा कि चरक संहिता में निर्देशित है की जो व्यक्ति अणु तेल के नियमित सेवन करता है उसकी इंद्रियों की दक्षता, आवाज की स्पष्टता और चेहरे की चमक में सुधार होता है।
इसके अलावा अणु तेल का नियमित रूप से सेवन करने से हंसली के ऊपर के क्षेत्र में बार-बार संक्रमण नहीं होता है। अर्थात यह बार-बार कान, नाक और गले में होने वाले संक्रमण से बचाता है।
Anu Thailam uses for nose in hindi, अणु तेल नाक में डालने के फायदे
अणु तेल को नासिका मार्ग के माध्यम से दिया जाता है। इसका बृंहण व स्नेहन गुण नाक को पोषित करता है, नासा अवरोध को दूर करता है, और बाहरी संक्रमण को शरीर के अंदर प्रवेश करने से बचाता है।
परिणामस्वरूप, यह शिरोरोग रोग उदाहरण के लिए सिरदर्द, माइग्रेन सिरदर्द, साइनसाइटिस, फ्लू जैसे लक्षण, प्रतिश्याय (सामान्य सर्दी), बाल झड़ना आदि लक्षणों से राहत देने में विशेष लाभकारी है।
इनके अलावा, यह सिर के लगभग सभी महत्वपूर्ण स्थानों तथा मर्मों पर कार्य करता है और विभिन्न लक्षणों से राहत देता है
Anu Thailam uses for Sinusitis in Hindi, साइनोसाइटिस में अणु तेल के फायदे
आयुर्वेद में वर्णित है की अणु तेल में शिरोविरेचकद्रव्य होता है। यह वात को शांत करके ललाट साइनसाइटिस के लक्षणों को दूर करता है। ललाट साइनस (frontal Sinus) पर एक एकल नैदानिक केस अध्ययन में अनुतेल के प्रभावी होने के प्रमाण मिले हें जिससे इसकी प्रभावकारिता सिद्ध होती है।
क्रोनिक साइनसाइटिस पर एक नैदानिक अध्ययन में, रोगियों को त्रिभुवन कीर्ति रस के साथ दशमूलक्वाथ की भाप और अणु तेल नस्य औषध निर्देशित किया गया। इस नैदानिक परीक्षण में पाया गया की उपचार व्यवस्था में दी गयी दवा की प्रभावकारिता 96.6% थी और इसे भली-भांति सहन करने लायक पाया गया और दवा का कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं मिला 2Panigrahi H. K. (2006). Efficacy of ayurvedic medicine in the treatment of uncomplicated chronic sinusitis. Ancient science of life, 26(1-2), 6–11.।
Anu Thailam benefits for hair in Hindi, बालों के झड़ने में अणु तेल के फायदे
अणु तेल में सूक्ष्म स्रोतोगामी और रोमकूप विशोधन गुणों युक्त होता है, इसके ये गुण बालों की जड़ों में अवरोधों को दूर करते हैं। जबकि बृंहण (पोषण) और वात-पित्त हर गुण बालों के झड़ने से रोकते हें जिससे नए बालों के विकास को बढ़ावा मिलता है। साथ ही यह असमय बालों के सफेद होने से रोकता है।
चरक संहिता में उल्लिखित है अणु तेल नस्य का समय पर उपयोग करने से, इंद्रियों की शक्ति बढ़ जाती है, सिर के बाल सफेद या भूरे नहीं होते, नहीं जल्दी नहीं झड़ते हैं, बल्कि उत्तम रूप से बढ़ते हैं।
एकल आधुनिक नैदानिक केस अध्ययन में अणु तेल नस्य खलित्य (बालों के झड़ने) रोग के इलाज में महत्वपूर्ण परिणाम दिखाते हुये अपनी प्रभावकारिता सिद्ध करता है। अध्ययन में पाया गया है की यह नए बालों के विकास को बढ़ावा देता है 3Dr. Jyothi S.; Dr. Ashwini MJ. A Single Case Study on the Efficacy of Anu Taila Nasya Followed by Narasimha Rasayana in Khalithya Vis-à-Vis Androgenic Alopecia. J Ayurveda Integr Med Sci 2021, 6, 232-238.।
अणु तेल बनाने की विधि Anu Thailum Method of preparation In Hindi
उपरोक्त वर्णित सभी घटक द्रव्यों को बराबर मात्रा में लेकर 100 गुना शुद्ध जल में दसवें भाग रह जाने तक उबाला जाता है। इस प्रकार एक काढ़ा प्राप्त होने के बाद अब तिल के तेल और काढ़े को एक अतिरिक्त बर्तन में लिया जाता है और केवल तेल बचे रहने तक पुनः उबाला जाता है। और इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को 9 बार तक दोहराया जाता है।
अंत में, बकरी का दूध मिलाया जाता है और पुनः तब-तक उबाला जाता है जब तक कि केवल तेल न बच जाए। इस प्रकार प्राप्त तेल को अणु तेल कहते हें।
अणु तेल की मात्रा (खुराक) Anu Thailam dosage In Hindi
- 1/2 पल (24 मिली) हफ्ते में तीन बार या 2 बूंद प्रति नासा छिद्र (द्वार) में अथवा आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा निर्देशित मात्रा अनुसार।
- नियमित उपयोग के लिए अनुतेल प्रतिमर्श नस्य की मात्रा – 2 बूंद प्रति नासा छिद्र (द्वार) में।
अणु तेल का उपयोग कैसे करे (उपयोग विधि) How to use Anu Thailam In Hindi
- पंचकर्म अनुसार नस्य कर्म विधि के अनुसार सामान्यतः नस्य देने से पहले रोगी को सुबह मल त्याग करने, पेशाब करने और दांतों को ब्रश करने के उपरांत नस्य का निर्देश है। नस्य कर्म में रोगी को एक कुर्सी पर बिठाकर चेहरे और गर्दन पर हल्की मालिश दी जाती है।
- अगर खालित्य रोग (बालों का झड़ना) में नस्य दिया जा रहा हो, तो वही मालिश सिर पर भी की जाती है, इसके लिए समान्यतः महानारायण तेल को उपयोग में लाते हें। इसके पश्चात स्वेदन कर्म (हीट या सूडेशन थेरेपी) किया जाता है।
- अंत में, प्रत्येक नासा छिद्र में बूंद-बूंद गुनगुना नस्य तेल डाला जाता है। यदि नस्य चूर्ण के रूप में दिया जा रहा हो तो चूर्ण औषधि प्रत्येक नासा छिद्र में फूंक दी जाती है। दी जाने वाली नस्य औषध की मात्रा नस्य के प्रकार या दोष असंतुलन के के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
- नस्य कर्म के पश्चात, धूमपान (औषधीय धुआँ) और कवल-गंडूष (कुल्ला करने के लिए औषध द्रव या तेल) दिया जाता है और हल्का आहार-विहार लेने का निर्देश दिया जाता है।
- हालांकि प्रतिमर्श नस्य सभी आयु वर्ग के लिए उपयुक्त और सुरक्षित है। स्वयं नस्य लेने के इच्छुक व्यक्तियों को, पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक सलाह लेनी चाहिए, इसके बाद ही नस्य का उपयोग करना चाहिए।
किसी भी व्यक्ति द्वारा ऊपर बताए गए सभी बुनियादी चरणों का पालन कर ना आसान है। जैसे- सभी प्राकृतिक आग्रहों (मल, मूत्र) त्याग करने के पश्चात, चेहरे, गर्दन व सिर पर धीरे-धीरे मालिश करके स्वेदन कर्म (गर्म पानी से चेहरा धोना), और फिर अंत हें प्रत्येक नासा छिद्र में गुनगुना नस्य तेल बूंद-बूंद करके निर्देशित मात्रा अनुसार डालना चाहिए।
अणु तेल नस्य लेने के लिए सही समय: Suitable time for taking Anu Thailam In Hindi
चरक संहिता के अनुसार निर्देशित है कि प्रति वर्ष ऋतु तथा काल के अनुसार नस्य कर्म वर्षा ऋतु, शरद ऋतु और वसंत ऋतु में जब आकाश बादलों से रहित हो तब लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त अणु तेल प्रतिमर्श नस्य को एक दिनचार्य (दैनिक दिनचर्या) के रूप में या किसी भी आयु वर्ग में किसी भी समय लिया जा सकता है।
अणु तेल नस्य कर्म सावधानियां: Anu Thailum Precaution in Hindi
- नस्य कर्म पूर्ण होने के पश्चात व्यक्ति को दही, भारी भोजन और ठंडी हवा का सेवन वर्जित है।
- नस्य कर्म के लिए गुनगुने नस्य तेल का प्रयोग करना चाहिए; ऐसा करने के लिए, तेल को एक पात्र में लेकर पात्र को गर्म पानी के ऊपर रखकर गर्म करना चाहिए।
- नस्य कर्म पश्चात रोगी को गर्म पानी लेने की सलाह दी जाती है।
- व्यक्ति को उष्ण वातावरण में रहना चाहिए।
- प्रदूषित वातावरण से व्यक्ति को बचना चाहिए।
क्या अणु तेल रात में इस्तेमाल कर सकते हैं?
हाँ, रात को सोने से पहले अणु तेल की 2 बूँदें में प्रत्येक नासा द्वार में लेनी चाहिए। इसके अतिरिक्त सुबह नींद से जागने पर नस्य लेना सबसे अच्छा माना जाता है। इससे यह नासा मार्ग अवरोध (जमा कफ) को दूर कर बाहर निकालने में मदद करता है।
क्या अणु तेल एलर्जी के लिए अच्छा है?
अणु तेल प्रमुख रूप से नासा मार्ग पर कार्य करता है और रुकावट को दूर करता है। यह बाहरी संक्रमण को शरीर में प्रवेश करने से रोकता है और इस प्रकार यह विभिन्न नासा रोगों जैसे- एलर्जिक रायनाइटिस, सामान्य सर्दी जुकाम, साइनस (साइनोसाइटिस) आदि को दूर करने में प्रमुखतः प्रभावी है।
क्या अणु तेल एंग्जायटी के लिए अच्छा है?
अणु तेल अपने बृंहण गुण से इंद्रियों को मजबूत करता है, वात को शांत करता है जिससे यह वात विकार (तंत्रिका संबंधी रोग) को दूर करने में प्रत्यक्ष रूप से प्रभावी है। सामान्यीकृत चिंता विकार (जनरलाइज्ड एंग्ज़ाइटी डिसॉर्डर) पर एक तुलनात्मक नैदानिक अध्ययन के अनुसार, अणु तेल प्रतिमर्श नस्य को दैनिक दिनचर्या (प्रतिदिन) के रूप में उपयोग करने में अत्यधिक प्रभावशाली पाया गया है4Hiremath N. & Kulkarni M. (2021). A comparative study of brahmi taila and anutaila pratimarsha nasya in management of Generalized Anxiety Disorder (GAD). International Journal of Indian Psychology, 9(1), 137-147. DIP:18.01.016/20210901, DOI:10.25215/0901.016।
अणु तेल के नुकसान Anu Thailam side effects In Hindi
- अणु तेल नस्य के उपयोग से जुड़ा अभीतक कोई महत्वपूर्ण ज्ञात प्रतिकूल प्रभाव नहीं है। इसे बिना किसी जटिलता से अच्छी तरह सहनीय बताया गया है।
- नस्य दवा प्रशासन का एक गैर-आक्रामक तथा सुरक्षित तरीका माना जाता है। हालांकि, नस्य लेने के बाद थोड़ी जलन, जमाव (कफ जमना) और गले में जलन होना अपेक्षित है। ये सामयिक लक्षण हैं और कुछ समय बाद स्वतः ही शांत हो जाते हें।
- फिर भी इसे एक प्रमाणित चिकित्सक द्वारा प्रशासित किया जाना चाहिए, स्व-प्रशासन चाहने वाले लोगों को नस्य का उपयोग करने से पहले एक आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
References
- 1Akhilanath Parida*; Satyasmita Jena; Varun Sawant. CLINICAL STUDY TO COMPARE THE EFFICACY OF NASYA KARMA WITH SHADBINDU TAILA AND ANU TAILA IN MIGRAINE VIS-O-VIS ARDHAVABHEDAKA. ayush 2020, 6, 2415-2422.
- 2Panigrahi H. K. (2006). Efficacy of ayurvedic medicine in the treatment of uncomplicated chronic sinusitis. Ancient science of life, 26(1-2), 6–11.
- 3Dr. Jyothi S.; Dr. Ashwini MJ. A Single Case Study on the Efficacy of Anu Taila Nasya Followed by Narasimha Rasayana in Khalithya Vis-à-Vis Androgenic Alopecia. J Ayurveda Integr Med Sci 2021, 6, 232-238.
- 4Hiremath N. & Kulkarni M. (2021). A comparative study of brahmi taila and anutaila pratimarsha nasya in management of Generalized Anxiety Disorder (GAD). International Journal of Indian Psychology, 9(1), 137-147. DIP:18.01.016/20210901, DOI:10.25215/0901.016